-इंदु बाला सिंह
आज मेरे घर आयी थी मेरी एक पुरानी आंटी ( फ्रेंड आंटी ,दीदी कुछ भी कह भी सकते हैं ) ।
' क्या करती है तुम दिन भर आती नहीं मेरे घर । क्या करती हो तुम दिन भर ? '
' ऐसे ही , थोड़ा बहुत लिखा करती हूं । कहानी वैगरह । '
आंटी जी ने बड़ी बड़ी आँख कर मेरा चेहरा देखा । फिर बोली -
' तुम तो नाटक लिखी थी न । हम लेडीज लोग नाटक किये थे । '
मैं चौंक गयी । फिर याद आया -
कालेज डेज में मैंने लिख के दिया था उन्हें एक नाटक क्लब में एक्ट करने के लिये ।
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