Sunday, October 4, 2015

दुष्टता की सजा ( लोक कथा )


04 October 2015
12:22

-इंदु बाला सिंह

एक बार सियार और भालू किसी बात पर लड़ पड़े |

पल भर दोनों एक दुसरे के दुश्मन बन गये थे , तभी उनकी सामने से गुजरते कछुये पर पड़ी | दोनों की आंखें चमक गयीं |

सियार गांव से एक झोला लाया और उसमें कछुये को उठा कर रख लिया |

सियार ने  भालू से कहा -

' इस झोले का मुंह बांध कर रख मैं अपने घर में रख देता हूं और हम घूम फिर कर देखते हैं कोई और शिकार | हो सकता है हमें कोई दूसरा शिकार भी मिले | '

सियार और भालू की कारस्तानी खरगोश देख रहा था | उसने कछुये  को बचाने की सोंची |

वह भालू और सियार से थोड़ी  दूर खड़े हो कर चिल्लाया -

' अरे देखो ...देखो ...खेत की फसल हिरण खा रहे हैं | ' और दौड़ा खरगोश खेत की तरफ |

खरगोश की बात सुनते ही भालू और सियार के मुंह में पानी भर आया |

' अरे ! आज तो हिरण का मॉस खाने को मिलेगा | '

वे दोनों खेत की और दौड़ पड़े |

खरगोश रास्ता बदल कर सियार के घर आया और  झोले का मुंह खोल दिया |

कछुआ झोले से बाहर निकल आया और खरगोश को धन्यवाद दिया |

कछुये ने कहा -

' उसकी मुसीबत में  वह भी जरूर उसकी सहायता करेगा | '

अब खरगोश मधुमक्खियों  के पास गया | वह उनसे भालू और सियार की दुष्टता के बारे में बताया |

मधुमक्खियों ने खरगोश को सहायता करने की ठानी |

खरगोश ने मधुमक्खियों से सियार के झोले में घुस जाने को कहा | फिर खरगोश ने झोले का मुंह बांध दिया |

खरगोश ने मधुमक्खियों से कहा कि जैसे ही सियार झोले का मुंह खोलेगा तुम लोग मिल के काटना भालू और सियार को |

और खरगोश वहां से चला गया |

खेतों में हिरण न मिला भालू और सियार को | वे दुखी मन से लौटे |

' कोई बात नहीं घर में कछुआ है न | ' सियार ने भालू से कहा |

सियार ने ज्यों ही झोले का मुंह खोला झोले में बंधी  मधुमक्खियां निकलीं और सियार और भालू पर टूट पड़ीं |

भालू और सियार चीखते हुये भागे |







  

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