Wednesday, October 21, 2015

सबसे शक्तिशाली अस्त्र ( लोक कथा )


21 October 2015
22:31





एक दिन राजा रूप राय अपने मत्री  के साथ अपने बाग में सबेरे सबेरे भ्रमण कर रहे थे | एकाएक उनके मन में एक प्रश्न कौंधा -

' संसार में सबसे शक्तिशाली अस्त्र कौन सा है ? '

राजा ने अपने मंत्री से अपने मन में उठे प्रश्न का उत्तर जानना चाहा |

प्रश्न सुन कर मंत्री सोंचने लगा -

' तलवार , बरछा , भाला सभी अस्त्र अपने अपने स्थान पर शक्तिशाली हैं | कोई अस्त्र तो किसी से कम नहीं | '

मंत्री को राजा के प्रश्न का कोई उत्तर न सुझा |

हार कर मंत्री ने कहा -

' राजन ! मुझे आपके प्रश्न का उत्तर पता करने के लिये थोड़ा समय दीजिये | '

राजा ने कहा -

' ठीक है | मैं तुम्हें सोंचने के लिये पन्द्रह दिन का समय देता हूं | '

अब मंत्री परेशान था | एक एक दिन बीत रहे थे पर उत्तर न मिल रहा था मंत्री को राजा के प्रश्न का |

एक दिन सुबह सुबह मंत्री नदी में नहा कर अपने लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाया और लौट रहा था तभी राह में हल्ला हुआ -

' भागो ! भागो ! '

मंत्री ने पीछे मुड़ कर देखा कि सब इधर उधर भाग रहे हैं और एक सांड उनकी ओर दौड़ता हुआ चला आ रहा है |

सांड मत्री के नजदीक पहुंच चूका था |

मंत्री ने समझ लिया कि अगर वह भागेगा तो भी सांड से बच न सकेगा इसलिये वह अपने ही स्थान पर खड़ा रहा | ज्यों ही सांड उसके पास पहुंचा उसने पूरी ताकत से अपने हाथ का लोटा सांड के माथे पर दे मारा |

सांड बौखला कर पीछे हटा और मंत्री उस स्थान से सरपट भागा |

मंत्री को राजा के प्रश्न का उत्तर मिल गया था |

दुसरे दिन मंत्री राजा के दरबार में पहुंचा और राजा से कहा -

' राजन ! सबसे शक्तिशाली अस्त्र ' साहस '  है | '

मत्री ने राजा को अपनी सुबहवाली घटना सुनाई और कहा कि ' साहस ' के कारण ही वह सांड से भिड़ सका था |


राजा रूप राय अपने मंत्री के उत्तर से खुश हुये  |

Friday, October 16, 2015

बकरे की माँ ( लोक कथा )


16 October 2015
13:00





बिर्जन ने बकरी पाली थी |

बकरी और मेमना खूब खेलते थे |

धीरे धीरे कुछ महीनों में मेमना एक हृष्ट पुष्ट बकरा बन गया |

अब बकरी को चिंता होने लगी |

बकरी ने सोंचा -

जरूर एक दिन मालिक मेरे मेमने को इतना हृष्ट देख किसी दिन काट कर खा जायेगा |

एक रात बकरी ने अपने मेमने को समझाया -

' देख बेटा ! तू बड़ा हो गया है | किसी दिन भी मालिक तुझे काट कर पकायेगा अपनी रसोईं में और फिर खा लेगा | देख बेटा ! तू जंगल में भाग जा | वहां तुझे खाने के लिये पौधों के हरे पत्ते मिलेंगे और पीने के लिये नदी का ठंडा जल | वहां तू खूब घूमना और खुश रहना | '

और रात में ही बकरी ने अपने मेमने की रस्सी दांत से चबा चबा कर तोड़ डाली |

दुखी मन से बकरे की माँ ने अपने प्राणप्यारी सन्तान को आशीर्वाद दे कर विदा कर दिया | 

सुबह बिर्जन ने देखा -

बकरा खूंटे पर नहीं है |


बिर्जन ने  अपना माथा पीट लिया |

Sunday, October 11, 2015

सुविधाजनक आकांक्षायें और भय ( लोक कथा )



12 October 2015
11:45



एक बार एक बटोही अकेले शहर की ओर अपने मित्र से काम की तलाश में मिलने जा रहा था |
गर्मी का मौसम था | राह में कोई छायादार पेड़ न था | प्यासा बटोही चलता जा रहा था |
सामने उसे एक पेड़ दिखाई दिया |

बटोही ने सोंचा -
इसी पेड़ के नीचे विश्राम कर लेता हूं |

बटोही बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया |

बटोही ने सोचा -
काश मुझे पानी मिल जाता |

तभी बटोही ने देखा एक ग्रामीण उसकी ओर आ रहा है | उसके हाथ में जल भरा लोटा है | पेड़ के नीचे रुके बटोही को देख उस ग्रामीण ने उसे पानी पिला दिया |

थोड़ी देर में बटोही को भूख लगी | उसने सोंचा -

काश कोई उसे भोजन करा देता |

थोड़ी देर में बटोही ने देखा कि जिस ग्रामीण ने उसे पानी पिलाया था वही थाली में भोजन और एक लोटे में पानी ले कर उसकी ओर आ रहा है |

बड़े प्यार से उस ग्रामीण ने बटोही को  भोजन कराया और पानी पिलाया |

बटोही भजन कर कर के तृप्त हुआ | फिर उसने सोंचा -

अभी तो दोपहर है सिर पर सूरज तप रहा है | काश खाट मिल जाती और वह थोड़ी झपकी ले लेता |

तभी बटोही ने देखा कि वही ग्रामीण एक खाट ले के उसकी ओर आ रहा है |

बटोही को लेटने के लिये अब खाट भी मिल गयी थी |

बटोही खाट पर लेट गया और सोंचा -

जो मैं सोंचता हूं वह हो जाता है | इस सूनी जगह में मुझे आरामदायक सुविधायें मिल गयीं |

उसे ज्ञान न था कि वह कल्पवृक्ष के नीचे आराम कर रहा है | वही कल्पवृक्ष जो अपने नीचे खड़े हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी करता है |

अब वह डर गया |

अगर यहाँ शेर आ जाये तो ?

और पल भर में एक शेर उसके सामने आ गया |

शेर ने एक दहाड़ मारी और बटोही को फाड़ कर खा गया |

Friday, October 9, 2015

सत्तर पार की मिसेज पुजारी


09 October 2015
22:14


-इंदु बाला सिंह

सत्तर पार की मिसेज पुजारी के गुजरने की खबर पूरे एक माह बाद मुझे मिली |

आजकल माता या पिता के मौत की खबर बच्चे अपने मित्रों को देते हैं और सारे क्रिया कर्म सम्पन्न कर देते हैं |

मिसेज पुजारी की खबर पा कर मुझे दुःख के साथ खुशी भी हुयी | वर्षों से बिस्तर पर थीं वे |
न जाने क्या बीमारी थी उन्हें |

अच्छा हुआ पति के जीते जी गुजर गयीं |

मिस्टर वर्मा पहले गुजरते तो न जाने कितने ताने सुनना पड़ता उन्हें अपने बेटे बहू से |

हमारे मुहल्ले में लोग अपने अड़ोस पड़ोस को केवल चेहरे से ही पहचानते हैं |

मिसेज पुजारी को भी मैं चेहरे से ही पहचानती थी |

एक दिन अपनी पड़ोसन से बतियाते हुये पता चला था कि मिसेज पुजारी बंगालन हैं |

चौक गयी मैं - जरूर लव मैरेज था होगा | वर्ना अरेंज्ड मैरेज कौन करता है दुसरे जात में |

और जिस प्यार से लाये थे होंगे घर में उसी प्यार से पार भी लगा दिया मिसेज पुजारी को उनके पति ने |
आज भी धीमे धीमे कदमों से चलते हुये देखती हूं कभी कभार मिस्टर पुजारी को तो रहस्यमयी बंगालन मिसेज पुजारी याद आ जाती है मुझे |


Sunday, October 4, 2015

दुष्टता की सजा ( लोक कथा )


04 October 2015
12:22

-इंदु बाला सिंह

एक बार सियार और भालू किसी बात पर लड़ पड़े |

पल भर दोनों एक दुसरे के दुश्मन बन गये थे , तभी उनकी सामने से गुजरते कछुये पर पड़ी | दोनों की आंखें चमक गयीं |

सियार गांव से एक झोला लाया और उसमें कछुये को उठा कर रख लिया |

सियार ने  भालू से कहा -

' इस झोले का मुंह बांध कर रख मैं अपने घर में रख देता हूं और हम घूम फिर कर देखते हैं कोई और शिकार | हो सकता है हमें कोई दूसरा शिकार भी मिले | '

सियार और भालू की कारस्तानी खरगोश देख रहा था | उसने कछुये  को बचाने की सोंची |

वह भालू और सियार से थोड़ी  दूर खड़े हो कर चिल्लाया -

' अरे देखो ...देखो ...खेत की फसल हिरण खा रहे हैं | ' और दौड़ा खरगोश खेत की तरफ |

खरगोश की बात सुनते ही भालू और सियार के मुंह में पानी भर आया |

' अरे ! आज तो हिरण का मॉस खाने को मिलेगा | '

वे दोनों खेत की और दौड़ पड़े |

खरगोश रास्ता बदल कर सियार के घर आया और  झोले का मुंह खोल दिया |

कछुआ झोले से बाहर निकल आया और खरगोश को धन्यवाद दिया |

कछुये ने कहा -

' उसकी मुसीबत में  वह भी जरूर उसकी सहायता करेगा | '

अब खरगोश मधुमक्खियों  के पास गया | वह उनसे भालू और सियार की दुष्टता के बारे में बताया |

मधुमक्खियों ने खरगोश को सहायता करने की ठानी |

खरगोश ने मधुमक्खियों से सियार के झोले में घुस जाने को कहा | फिर खरगोश ने झोले का मुंह बांध दिया |

खरगोश ने मधुमक्खियों से कहा कि जैसे ही सियार झोले का मुंह खोलेगा तुम लोग मिल के काटना भालू और सियार को |

और खरगोश वहां से चला गया |

खेतों में हिरण न मिला भालू और सियार को | वे दुखी मन से लौटे |

' कोई बात नहीं घर में कछुआ है न | ' सियार ने भालू से कहा |

सियार ने ज्यों ही झोले का मुंह खोला झोले में बंधी  मधुमक्खियां निकलीं और सियार और भालू पर टूट पड़ीं |

भालू और सियार चीखते हुये भागे |







  

Friday, October 2, 2015

अकेली औरत


02 October 2015
23:40


-इंदु बाला सिंह

हंस कर कहा इंजीनियर की पत्नी सोना ने अपनी कामवाली से -

' माँ बेटी को अलग अलग कार्ड दे देना अपनी बेटी की शादी में तुम | मैंने तो नहीं बुलाया था बेटी को अपने घर के फंक्शन में | केवल माँ को ही बुलाया था |'

अपमान से मुंह काला हो गया था स्निग्धा  का मुंह सुन कर प्रथम तल से आती किरायेदार की आवाज |

स्निग्धा ने सकपका के अपनी चालीस वर्षीया बेटी का मुंह देखा |

उसकी चालीस वर्षीया बेटी आफिस से लौट कर चाय पी रही थी |

माँ ने अपने मकान में अपनी बेटी स्निग्धा को रहने के लिये एक कमरा दे कर मुक्ति पायी थी |

चार बच्चों की माँ के दुखो को बांटनेवाला कोई न था | जनूनी की तरह पैसा कमाना जाना था स्निग्धा ने |


और स्निग्धा अब अपनी धनाढ्य माँ के गले हड्डी बन गयी  थी |