Wednesday, August 5, 2015

माँ की चुप्पी ( लोक कथायें )


06 August 2015
08:34

-इंदु बाला सिंह

सिद्धेश नाम का एक लड़का था | वह आये दिन स्कूल में अपने सहपाठियों के पेन , रबर ,पेंसिल चुराता था | स्कूल के शिक्षक सिद्धेश को सजा दे के परेशान थे |
घर में सिद्धेश की माँ से शिकायत कर कर के थक चुके थे |
सिद्धेश की माँ घरों में काम करती थी | चीनी , चायपत्ती , साबुन की छोटी बट्टी मालिक के घर से चुरा कर अपने घर लाना उसकी आदत थी | कभी कभी तो वह घरों में जमीन पर गिरे सिक्के भी चूरा लेती थी | उसे सिद्धार्थ का पेन , पेन्सिल इत्यादि चुराना आम बात लगती थी |
सिद्धेश के पिता सुबह सुबह शहर में मजूरी करने जाते थे तो शाम को लौटते थे |
पढ़ाई में कमजोर सिद्धेश घर के अभाव के कारण धीरे धीरे कुछ वर्षों में एक बड़ा चोर बन गया | वह बसों में पाकेटमारी करने लगा |
आखिर एक बार सिद्धार्थ पुलिस की पकड़ में आ गया | उसे कोर्ट में जज ने एक साल की सजा सुनायी |
सिद्धार्थ ने जज से अपनी माँ से एक मिनट बात करने की आज्ञा मांगी |
माँ को अपने पुत्र सिद्धेश से एक मिनट के लिये मिलने की सहमति मिल गयी |
माँ पुत्र से मिलने कटघरे के पास खड़ी हुयी |
सिद्धेश ने माँ के कान में कुछ फुसफुसा कर कहने की चेष्टा की और फट से उसका कान काट लिया | फिर वह जोर से वह चीखा -
इसी कान से तुम सुनती थी न मेरी स्कूल में की जानेवाली चोरी | तुमने कभी न टोका | तुम चुप रहती थी | आज देखो मैं बड़ा चोर बन गया हूं |

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