Wednesday, July 22, 2015

पैतृक अमरुद का पेड़ ( लोक कथायें )


22 July 2015
23:20
-इंदु बाला सिंह


मुकुंद चंद नामक एक व्यापारी था | उसके तीन बेटे थे |

एक बार वह बीमार पड़ा और मर गया |

अब घर की जिम्मेवारी बेटों पर आ पड़ी |

वे कुछ काम तो करते नहीं थे पिता के रखे पैसों से घर घर चला ,पर कब रखा पैसा चलता

पिता का रखा पैसा भी खत्म हो गया |

घर में दो अमरुद के पेड़ थे | ये बारहमासी पेड़ थे | इनमें साल भर अमरुद फलता था | एक भाई अमरुद तोड़ता था | दूसरा भाई  अमरुद को टोकरी में  भर कर शहर के बाजार में बेच आता था | तीसरा भाई उन पैसों से घर का सामान लाता था |

घर में दरिद्रता फ़ैली थी | कोई भाई शहर में जा कर काम ढूंढना न चाहता था |

बस किसी तरह घर में रुखा सूखा खा कर जी रहे घर के प्राणी |

एक बार मुकुंद चंद के मित्र राधेश्याम आये अपने गुजरे हुये मित्र के घर | घर का हाल देख वे बहुत  दुखित हुये |

वे सोंचे कि घर में जब तक अमरुद का पेड़ है तब तक ये लड़के कोई काम न करेंगे |

अमरुद न मिलने पर ये तीनों भाई जरूर कुछ न कुछ काम ढूंढेगे |

उसी रात उस मेहमान ने दोनों अमरुद का पेड़ काट दिया |

सुबह अपने कते अमरुद का पेड़ देख के तीनों भाई बड़े दुखी हुये |

पर चूँकि तीनों भाई  सौम्य थे , वे पेड़ कटने का दर्द सह लिये |

पिता का मित्र  भोर भोर चला गया |

एक साल बाद राधे श्याम फिर लौटा मुकुंद चंद के बेटों के घर |

तीनों बेटे शहर में काम करने लगे थे |


घर की स्थिति सुधर चुकी थी |

Monday, July 13, 2015

TEACHER / STUDENTS -5 तुमको भी मिलेगा लड्डू


13 July 2015
21:26

-इंदु बाला सिंह

-टीचर ! सुमित बोला था न आपसे कि मैथ्स में उसका ट्वेंटी आउट ऑफ़ ट्वेंटी आएगा क्लास टेस्ट में .... उसको ट्वेंटी मिला ...उपरवाले ट्वेंटी के जीरो ने धक्का दिया टू को ....टू गिर गया नीचे ....फिर जीरो बैठा लिया अपने बगल में ...... अपने दोस्त जीरो को ....और सुमित को मिल गया दो ठो जीरो |


-अच्छा है ! खाने दो सुमित को दो ठो लड्डू ..और बैठे रहेगा वह अगले साल भी आठवीं में ..... खोलो अपनी मैथ्स बुक ...शुरू करो साल्व करना सम्स ...नहीं तो परीक्षा में तुमको भी मिलेगा लड्डू |

Thursday, July 2, 2015

मैंने भी देखी थी उड़ने तश्तरी


02 July 2015
10:55


-इंदु बाला सिंह



उड़न तश्तरी की बात चली आठवीं कक्षा के जीरो पीरियड में |

सब छात्र इंटरनेट की खबरों में बयान किये गये विवरणों में पढ़े हुये अनुभव साझा कर रहे थे |

इसी बीच सिमरन उठ खड़ा हुआ |

-टीचर मैंने देखी है उड़न तश्तरी |

कक्षा के अन्य छात्रों ने चौंक कर सिमरन का मुंह देखा |

-अच्छा !

टीचर उत्सुक हुयी |

- चार साल पहले देखा था मैंने टीचर |

कक्षा के छात्र हंस पड़े |

-हंसना गलत बात ... सब सुनो |

टीचर ने डांटा |

-टीचर मेरे घर के सामने एक बड़ा सा मैदान है | रात में मैंने देखा था एक चमकदार गोल चीज मैदान में उतरते हुये | जैसे ही वो नीचे आयी थी पूरे शहर की लाईट चली गयी थी | और फिर सुनायी दिया था कि एक बच्चा गुम गया है |

और श्रुति टीचर को याद आया  कुछ साल पहले उसने भी सूनी थी ऐसी ही घटना |


पता नहीं वह घटना अफवाह थी या सच |