Wednesday, June 24, 2015

पार्क में रोशनी

25 June 2015
10:59


-इंदु बाला सिंह

-अरे ! माँ देखो आज हमारे पार्क में फ्लड लाईट लग गयी है | कितनी रोशनी है | पढ़ने जाऊं पार्क में |

-क्यों तुम्हारे घर में रोशनी नहीं है |

-वहां कितना शांति है | यहां तो टी० वी० सीरियल डिस्टर्ब कर रहा है |

-ओ०  के० | मैं टी० वी० बंद कर देती हूं |

-पर वहां पढ़ने से बिजली का बिल भी बचेगा न | - मुन्ना ने आख़िरी वार किया |

-ओ०  के० | मैं पूरे घर में जीरो नाईट बल्ब ऑन कर देती हूं | अब तो बिजली का बिल बचेगा न | - मुन्ने की पार्क में घूमने जाने की मंशा समझ चुकी थी माँ |

मुन्ना का यह तीर भी खाली चला गया |

और वह चुपचाप टेबल के सामने से दिखती फ्लड लाईट और रंगीन फौव्वारे को देखने लगा |

Sunday, June 14, 2015

TEACHER / STUDENTS -4 ....कान उमेठ कर निकाल दूंगी


29 January 2015
07:12

-इंदु बाला सिंह 

टीचर -   जल्दी जल्दी होमवर्क कर | घर से कर के नहीं लाया है | जल्दी जल्दी होमवर्क कर नहीं तो           कान  उमेठ कर निकाल दूंगी और तेर हाथ में पकड़ा दूंगी | जल्दी जल्दी हाथ चला |


चौथी कक्षा के छात्र रमेश की बायीं हथेली धीरे से अपना कान छू ली और हाथ की पेन्सिल कापी पर जल्दी जल्दी चलने लगी |