Friday, April 24, 2015

पेड़ से लटकते किसान ( लघु लेख )


25 April 2015
06:27


-इंदु बाला सिंह


पेड़ से झूलते  किसान की खबर तोड़ देती है मन |

कहीं कहीं तो किसान का पूर्ण छोटा परिवार ही लटक जाता है पेड़ से और मन डूबने लगता है  |

मौसम की मार तो किसान सदा झेलता रहा है |

वर्षों पहले गांवों में लोग एक ही बखरी में रहते थे पर उनके चूल्हे अलग थे | एक ही बखरी में रहने से परिवार के सदस्य सुरक्षित तो रहते थे और एक दुसरे का मन भी ताक झाँक लेते थे | घर की महिलायें आपस में सुख दुःख बांटती थी वहीं एक दूसरे को ताना भी मारती थीं | गांव की खट्टी मीठी जिन्दगी अनुभवों से परिपूर्ण थी |

फसल खराब होने पर लोग परिवार छोड़ कर शहर चले जाते थे रिश्तेदारों के घर |

कुछ ऐसे भी छोटे किसान रहते थे जिस घर का एक भाई गांव में ही रह कर  खेती करता था और पास के शहर में जा कर काम भी करता था | सयुंक्त परिवारवाले  किसान पेड़ से लटकते नहीं थे | फसल खराब हुयी खरीद कर खाते थे मंहगा अनाज | आंधी में कच्चे घर की खपरैल छत  उड़ गयी दीवाल ढह गयी तो परेशानी होती थी पर गांव का हर व्यक्ति एक दुसरे के घर मजदूर की तरह खटता था |

आज छोटे परिवार अलग मकान में रहनेवाले लोग अपना दुःख किससे  कहे परिवार का मुखिया  | छोटे परिवार में किसी रिश्तेदार के लिये जगह नहीं | माता पिता भी तो किसी एक औलाद के पास ही रहेंगे |

किसान मित्रगण के न पूरे होनेवाले आश्वासन और रिश्तेदारों की अवहेलना से टूट कर अपने जीवन  का अंत कर लेना पसंद करता है |

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