Monday, February 9, 2015

राह में छेड़खानी


09 February 2015
22:57
-इंदु बाला सिंह


-मिस ! आज टर्निंग पर एक लड़का खड़ा था ...बोल रहा था ..आ जा तुझे लिफ्ट दे दूंगा |

-मिस ! मैं आ रही थी तो मुझे भी एक लड़का मिला था ...बोल रहा था ...मेरी स्कूटी पर बैठ जा |

 -' मिस ! मुझे तो दिखाई ही कम देता है ...मुझे चश्मा खरीदना है ... मुझे भी बोला होगा ... मुझे सुनायी ही नहीं दिया होगा | ' डरी डरी सहमी आवाज में तीसरी लड़की ने कहा |

कमरे में घुसते ही एक एक कर छात्राओं ने  घबरा कर सड़क पर का आज का अनुभव कहा |

आठवीं कक्षा के दस छात्र व छात्रायें टीचर सुरभि के पास गणित पढ़ने आते थे |

और सुरभि  एक पल घबरा कर  सोंचने लगी कि कमरे में पढ़ने बैठे छात्र क्या सोंच रहे होंगे |

सभी छात्र चुपचाप गणित के अपने अपने प्रश्न हल कर  रहे थे |

एक पल को सुरभि को वह बदमाश याद आ गया जो सुबह सुबह सड़क पर फट से एकाएक उसके सामने  अपनी लूंगी खोल दिया था और वह हकबका गयी थी |

-' अरे ! तुमको कोई लड़का कैसे छेड़ दिया ? मैं तो लड़कों को छेड़ती हूं | " इस छात्रा के पिता दबंग व्यक्ति थे कोई |

-' देखो डरना नहीं कभी रास्ते में कोई छेड़े तो | बोलना अभी लगाती हूं मैं पुलिस थाने में नम्बर और अपना मोबाइल फट से क्लिक करना | ' सुरभि ने समझाया |

-अरे मिस ! एक बार तो हम दो लडकियां जा रहे थे तो एक लड़का स्कूटी मेरे बगल में धीरे कर के कुछ बोलने लगा तो मैंने ऊंची आवाज में अपनी फ्रेंड से कहा - लगा तो भैय्या को फोन ..और वो लड़का भाग गया तेजी से अपनी स्कूटी चला के |

दुसरे दिन किसी छात्रा के कान में  मोबाइल का तार था तो किसी की मां अपनी स्कूटी से ट्यूशन छोड़ने आयी थी |


सभी छात्राओं ने  अपने अपने तरीके से समाधान निकाल लिया था |

Thursday, February 5, 2015

बरसात में एक ट्रेन यात्रा


04 August 2014
15:56
-इंदु बाला सिंह

हमें  पारादीप से भुबनेश्वर के लिये निकलना था |

ट्रेन सुबह छ: बजे छूटती थी | बरसात का मौसम था | लाईन लगा कर टिकट लिये और  भागे हम |

इस ट्रेन की यह खासियत थी कि ऑटो रिक्शा की तरह यह स्टेशन पर हर यात्री के चढ़ने के लिये रुकी रहती थी |

खाली हैण्ड बैग  हाथ में था मेरे |

ट्रेन ड्राइवर हमें दौड़ते देख रहा था | अतः उसने स्पीड धीरी रखी थी ट्रेन की | हम ( मैं और मेरा बेटा ) ट्रेन की विपरीत दिशा में दौड़ रहे थे | रेलवे स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म इतना नीचा था कि डिब्बे की  सबसे निचली सीढ़ी जमीन से एक फुट उपर थी |

आखिर हम चढ़ ही गये ट्रेन की एक बोगी में | सीट पर बैठने के बाद सांस में सांस आयी मेरी |

हमें अस्पताल जाना था | पारादीप में अच्छे अस्पताल नहीं हैं |

ट्रेन चल रही थी हमारी | ट्रेन का यह रूट हमारे लिये नया था क्योंकि हम पारादीप में नये आये थे |

ट्रेन कटक में आधा  घंटे रुक कर आगे भुबनेश्वर के लिये चलती थी |

हमारी दो घंटे की रेलयात्रा के बाद कटक स्टेशन आया |

फिर ट्रेन चल पड़ी | कटक से भुबनेश्वर एक घंटे में ट्रेन पहुंचाती है |

डेढ़ घंटे बीत गये ट्रेन को कटक से चले पर भुबनेश्वर न आया |

ट्रेन की खिड़की से दोनों तरफ हमें गाँव दिखाई दे रहे थे |

मैं घबरा गयी |

" ये ट्रेन कहाँ जा रही रही है " , यह सोंच मैं परेशान  हो गयी |

मेरे साथ साथ मेरा बेटा भी चिंतित हो  उठा | उसने अपने आफिस में एक कर्मचारी को फोन से अपनी स्थिति से अवगत कराया |

पता चला कि हम जरूर ट्रेन के गलत डिब्बे में बैठ गये हैं और हमारा  डिब्बा ट्रेन से कट चूका है | हमारी ट्रेन दूसरी ओर जा रही है |

अब मेरी जान सूख गयी |

हमारे दोनों तरफ गाँव ही गाँव दिख रहे थे | ट्रेन रुक रही थी छोटे छोटे स्टेशन पर फिर आगे बढ़ रही थी | हमारा डिब्बा खाली हो गया था |

हमसे थोड़ी दूर पर बैठे दो युवा हमें ताड़ रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे | जितना भी हो सके मैं अपने चेहरे पर भाव न आने दे रही थी | हम सोंच रहे थे कि कोई एक बड़ा स्टेशन आये और हम उतर जायें | हम टैक्सी से कटक पहुंच सकते थे | पर स्टेशन आये तब न |

मुझे लग रहा था मैं किसी अंधेरी गली में घुसती जा रही हूँ | मुझे पता ही न चल रहा था हम लौटेंगे कैसे  |

ट्रेन से बाहर लगातार हल्की बारिश हो रही थी |

अब खिड़की से दोनों तरफ मुझे बाढ़ में आधी डूबी झोपड़ियाँ व खेत दिखायी देने लगे | मुझे लगा एक समय आएगा जब ट्रेन खड़ी हो जायेगी और हमारे दोनों तरफ बाढ़ का पानी होगा | मुझे लगने लगा  अब मैं कभी घर वापस लौट न पाउंगी |

मेरा दिल डूबने लगा |

मैं  ओड़िसा के कितने अंदर गांवों में घुसती जा रही थी |

मैं कहाँ जा रही हूं कब तक यह ट्रेन चलती रहेगी कुछ न मालूम हो रहा था मुझे |

तभी एक बड़ा जंक्शन आया | इस समय मुझे नाम याद नहीं |

हम जल्दी से उतरे |

स्टेशन में जा कर कटक लौटनेवाली ट्रेन के बारे में हमने पूछा |

स्टेशन मास्टर ने बताया अभी बीस मिनट में राजधानी ट्रेन आ रही है | वह ट्रेन आपको कटक पहुंचा देगी |

जल्दी से टिकट ले के भागे हम |

ट्रेन तब तक धड़धड़ाती हुयी आयी प्लेटफार्म पर और हम बौखला के ट्रेन में चढ़ गये  |

मुसाफिरों से भरी ट्रेन देख मेरी जान में जान आयी

हम कटक पहुंचे और फिर कटक से दूसरी ट्रेन पकड़ कर पारादीप रात साढ़े आठ बजे पहुंचे |

घर पहुंच कर आया था हमें सुकून |  

यह अविस्मरणीय रेलयात्रा मुझे भुलाये नहीं भूलती |

हम ओड़िसा के गाँवों में गुमने से बच गये थे उस दिन |


आज भी जब मूसलाधार बारिश होती है तो मुझे वह रेल यात्रा याद आ जाती है पल भर को दिल बैठ सा जाता है |