04 August
2014
15:56
-इंदु बाला
सिंह
हमें पारादीप से भुबनेश्वर के लिये निकलना था |
ट्रेन सुबह छ:
बजे छूटती थी | बरसात का मौसम था | लाईन लगा कर टिकट लिये और भागे हम |
इस ट्रेन की
यह खासियत थी कि ऑटो रिक्शा की तरह यह स्टेशन पर हर यात्री के चढ़ने के लिये रुकी
रहती थी |
खाली हैण्ड
बैग हाथ में था मेरे |
ट्रेन ड्राइवर
हमें दौड़ते देख रहा था | अतः उसने स्पीड धीरी रखी थी ट्रेन की | हम ( मैं और मेरा
बेटा ) ट्रेन की विपरीत दिशा में दौड़ रहे थे | रेलवे स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म इतना
नीचा था कि डिब्बे की सबसे निचली सीढ़ी
जमीन से एक फुट उपर थी |
आखिर हम चढ़ ही
गये ट्रेन की एक बोगी में | सीट पर बैठने के बाद सांस में सांस आयी मेरी |
हमें अस्पताल
जाना था | पारादीप में अच्छे अस्पताल नहीं हैं |
ट्रेन चल रही
थी हमारी | ट्रेन का यह रूट हमारे लिये नया था क्योंकि हम पारादीप में नये आये थे
|
ट्रेन कटक में
आधा घंटे रुक कर आगे भुबनेश्वर के लिये
चलती थी |
हमारी दो घंटे
की रेलयात्रा के बाद कटक स्टेशन आया |
फिर ट्रेन चल
पड़ी | कटक से भुबनेश्वर एक घंटे में ट्रेन पहुंचाती है |
डेढ़ घंटे बीत
गये ट्रेन को कटक से चले पर भुबनेश्वर न आया |
ट्रेन की
खिड़की से दोनों तरफ हमें गाँव दिखाई दे रहे थे |
मैं घबरा गयी
|
" ये
ट्रेन कहाँ जा रही रही है " , यह सोंच मैं परेशान हो गयी |
मेरे साथ साथ
मेरा बेटा भी चिंतित हो उठा | उसने अपने
आफिस में एक कर्मचारी को फोन से अपनी स्थिति से अवगत कराया |
पता चला कि हम
जरूर ट्रेन के गलत डिब्बे में बैठ गये हैं और हमारा डिब्बा ट्रेन से कट चूका है | हमारी ट्रेन
दूसरी ओर जा रही है |
अब मेरी जान
सूख गयी |
हमारे दोनों
तरफ गाँव ही गाँव दिख रहे थे | ट्रेन रुक रही थी छोटे छोटे स्टेशन पर फिर आगे बढ़
रही थी | हमारा डिब्बा खाली हो गया था |
हमसे थोड़ी दूर
पर बैठे दो युवा हमें ताड़ रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे | जितना भी हो सके
मैं अपने चेहरे पर भाव न आने दे रही थी | हम सोंच रहे थे कि कोई एक बड़ा स्टेशन आये
और हम उतर जायें | हम टैक्सी से कटक पहुंच सकते थे | पर स्टेशन आये तब न |
मुझे लग रहा
था मैं किसी अंधेरी गली में घुसती जा रही हूँ | मुझे पता ही न चल रहा था हम
लौटेंगे कैसे |
ट्रेन से बाहर
लगातार हल्की बारिश हो रही थी |
अब खिड़की से
दोनों तरफ मुझे बाढ़ में आधी डूबी झोपड़ियाँ व खेत दिखायी देने लगे | मुझे लगा एक
समय आएगा जब ट्रेन खड़ी हो जायेगी और हमारे दोनों तरफ बाढ़ का पानी होगा | मुझे लगने
लगा अब मैं कभी घर वापस लौट न पाउंगी |
मेरा दिल
डूबने लगा |
मैं ओड़िसा के कितने अंदर गांवों में घुसती जा रही
थी |
मैं कहाँ जा
रही हूं कब तक यह ट्रेन चलती रहेगी कुछ न मालूम हो रहा था मुझे |
तभी एक बड़ा
जंक्शन आया | इस समय मुझे नाम याद नहीं |
हम जल्दी से
उतरे |
स्टेशन में जा
कर कटक लौटनेवाली ट्रेन के बारे में हमने पूछा |
स्टेशन मास्टर
ने बताया अभी बीस मिनट में राजधानी ट्रेन आ रही है | वह ट्रेन आपको कटक पहुंचा
देगी |
जल्दी से टिकट
ले के भागे हम |
ट्रेन तब तक
धड़धड़ाती हुयी आयी प्लेटफार्म पर और हम बौखला के ट्रेन में चढ़ गये |
मुसाफिरों से
भरी ट्रेन देख मेरी जान में जान आयी
हम कटक पहुंचे
और फिर कटक से दूसरी ट्रेन पकड़ कर पारादीप रात साढ़े आठ बजे पहुंचे |
घर पहुंच कर
आया था हमें सुकून |
यह अविस्मरणीय
रेलयात्रा मुझे भुलाये नहीं भूलती |
हम ओड़िसा के
गाँवों में गुमने से बच गये थे उस दिन |
आज भी जब
मूसलाधार बारिश होती है तो मुझे वह रेल यात्रा याद आ जाती है पल भर को दिल बैठ सा
जाता है |