07
November 2014
12:54
न
जाने क्यों कौए नहीं भाते मुझे |
हमारे घर के
सामने एक जामुन का पेड़ था और कौए जामुन चोंच में पकड़ कर हमारी छत की मुंडेर पर बैठ
कर खाते थे | पर एक बार में एक ही कौआ बैठता था | दूसरा कौआ आये तो पहला कौआ उसे अपनी चोंच से मार कर भगा देता था |
कौए का इतना
आतंक था छत पर कि किसी भी समय छत पर खड़ा होना खतरनाक था |
एक बार मैं शाम छ: बजे मुंडेर पर खड़ी थी और नीचे
रास्ते में आने जाने वालों को देख रही थी | मन में था कि कौए तो अपने अपने घोंसले
में होंगे और तभी एक कौआ आया और जब तक मैं
सम्हलूं सम्हलूं वो मेरे सिर में अपने फूले पेट से धक्का देते हुये उड़ गया | डर कर
भागी मैं छत के बीच में | सोंची शुक्र है कौए ने चोंच से नहीं मारा |
छत केवल रात
को ही महफूज रहती थी पर कभी कभी उंचाई में उड़ते विशालकाय कौए भी दिखते थे मुझे रात
में |
मेरी सहकर्मी
ने बताया कि रात में कौए थोड़े न उड़ते हैं | रात में तो चीलें उड़ती हैं | पर मुझे
उसकी बात पर कभी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि मैंने स्वयं देखा था रात के समय गौरय्या
को चीं चीं... कर उड़ते हुये | वह उड़ कर बिजली के तार पर बैठ जाती थी फिर इधर उधर
उड़ती रहती थी |
कौए के डर से
मैं छत पर छज्जे के नीचे खड़ी रहती थी | अब छत पर कौआ हंकनी की तरह डंडा ले कर खड़ा
होना भी सम्भव न था |
एक दिन शाम के
चार बजे का समय था और मैं छत पर चली गयी | हमारे बगल की छत पर आकाश में पांच छ:
कौओं ने गोल गोल उड़ कर एक गौरय्या को घेर
रखा था |
अजूबा व नया
दृश्य था यह मेरे लिये | देर तक गौरय्या और कौए उड़ते रहे और हवा में उपर नीचे होते
रहे | एकाएक एक कौए ने ऐसी चोंच मारी
गौरय्या को कि घायल हो वह गिर पड़ी बगल घर की छत पर | फिर टूट पड़ा उस गिरी चिड़िया
पर एक कौआ |
वीभत्स
प्राकृतिक दृश्य था |
कुछ साल बाद
आंधी में वह जामुन का विशाल वृक्ष गिर पड़ा |
और खुश हुई थी
मैं |
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