Friday, October 24, 2014

शहर और संस्कार -1


25 October 2014
07:07


लघु लेख 

-इंदु बाला सिंह

ब्राह्मण परिवारों से घिरा एक राजपूत परिवार भी ब्राह्मण सा ही था उस गांव में पर वहां किसी घर में न तो दिवाली की जगमगाहट रहती थी और न दुर्गा पूजा की रौनक | बखरी के सामने खड़ा पीपल का पेड़ भी काट दिया था राजपूत परिवार के एक सदस्य ने | बस था एक दूर स्थित एक सती मैय्या का मन्दिर जहां घर के जन्मे बेटों का मुंडन संस्कार जरूरी था | खर ज्युतिया का उपवास जरूर होता था |  शायद हमारा गांव गरीब था और वह राजपूत परिवार उससे भी ज्यादा गरीब क्योंकि उस परिवार में उपवास के समय फलाहार या उपवास के बाद भी पूड़ी छानने पर घर की महिलाओं को गालियां पडतीं थीं | संस्कार के बीज तो शहरों में लगते हैं | आरक्षण तो शहरों में है | गांव तो खेत और रूपये पहचानता है |

पर जय हो शहर का जिसने सिखाया हमें त्यौहार मनाना | हममें संस्कार की नींव डाली |

No comments:

Post a Comment