Friday, October 31, 2014

टीचर दोस्त नहीं होता


01 November 2014
07:53
-इंदु बाला सिंह

' टीचर ! आपको पता है न ....कल आंवला नवमी है | '

चलते फिरते कैलेंडर  छात्र के उत्साह पर शिक्षिका ने पानी फेर दिया - ' हाँ तो कितने नम्बर मिलेंगे तुम्हें इस बार गणित में '


शिक्षक कभी अच्छा दोस्त नहीं होता परीक्षा के समय पहचानता ही नहीं वह अपने दोस्त छात्र को ........ सोंच कर दुखी हो गया नवम कक्षा का छात्र  |

प्रधानमत्री को गोली लगी


31 October 2014
19:49
-इंदु बाला सिंह

उस दिन अध्यापिका प्रीति ने स्कूल से लौट कर अभी घर में पहला कदम रखा ही था कि उसके पिता ने खा था उससे  - इंदिरा गांधी को किसी ने गोली मार दी है |

दिन के दो बजे यह खबर सुनाई थी उसके पिता ने | हकबका कर उसने अपने पिता का मुंह देखा था | देश के प्रधानमत्री को गोली मारना बहुत बड़ी बात थी | फिर स्कूल बंद हुये | शहरों में दंगे हुये पर उसके शहर में मात्र दो व्यक्ति मरे थे एक बच्चा और एक बूढ़ा ऐसा उसने उड़ती खबर में सुना था पर  यह खबर कितना सच थी  पता नहीं | उसका शहर सदा शांत रहा है |

अखबार रंग गये थे खबरों से , चित्रों से | बस एक दहशत थी माहौल में |

मुहल्ले के एक परिवार ने कुछ दिन पहले ही नयी टी० वी० खरीदी थी |
जिस दिन इंदिरा गांधी का शव दर्शनार्थ रखा गया था दिल्ले में उस दिन उस परिवार का ड्राइंग रूम खुला था दिन भर हर व्यक्ति के लिये खुला था | अनजान व्यक्ति आते थे खड़े खड़े देखते थे अपनी प्रधानमंत्री को और लौट  जाते थे अपने घर |

प्रीति ने भी उस दिन देखा था टी० वी० पर अपनी प्रधान मंत्री को |


जब जब बात होती है इंदिरा गांधी की तब तब प्रीति को अपनी मुहल्ले की महिला याद आ जाती है |

Friday, October 24, 2014

शहर और संस्कार -1


25 October 2014
07:07


लघु लेख 

-इंदु बाला सिंह

ब्राह्मण परिवारों से घिरा एक राजपूत परिवार भी ब्राह्मण सा ही था उस गांव में पर वहां किसी घर में न तो दिवाली की जगमगाहट रहती थी और न दुर्गा पूजा की रौनक | बखरी के सामने खड़ा पीपल का पेड़ भी काट दिया था राजपूत परिवार के एक सदस्य ने | बस था एक दूर स्थित एक सती मैय्या का मन्दिर जहां घर के जन्मे बेटों का मुंडन संस्कार जरूरी था | खर ज्युतिया का उपवास जरूर होता था |  शायद हमारा गांव गरीब था और वह राजपूत परिवार उससे भी ज्यादा गरीब क्योंकि उस परिवार में उपवास के समय फलाहार या उपवास के बाद भी पूड़ी छानने पर घर की महिलाओं को गालियां पडतीं थीं | संस्कार के बीज तो शहरों में लगते हैं | आरक्षण तो शहरों में है | गांव तो खेत और रूपये पहचानता है |

पर जय हो शहर का जिसने सिखाया हमें त्यौहार मनाना | हममें संस्कार की नींव डाली |

Sunday, October 19, 2014

पांच सौ का नोट


16 October 2014
16:20
-इंदु बाला सिंह


" मैडम ! मेरा रुपया चोरी हो गया है | " दसवीं कक्षा के रूपेश ने मिस श्वेता से शिकायत की |

" कैसे ? "

" मैडम ! मैंने पेंसिल वाले बैग में डाल कर अपने स्कूल बैग में रखा था उसे | हमारा स्मार्ट क्लास था | वापस आया तो देखा कि रुपया नहीं है  | "

" मैडम ! मेरा पांच सौ का नोट था | " रूपेश की सुरत रुआंसी हो गयी थी |

" ठीक है | अगला पीरियड मेरा ही है | मैं पूछूंगी क्लास में | "

और जब मिस श्वेता ने रूपेश के पाच सौ के नोट की चोरी के बारे में छात्रों से पूछा तब सभी छात्र  मुकर गये |

हार कर  पॉकेट की तलाशी हुयी लड़के लडकियों की |

सबके स्कूल बैग की भी तलाशी हुयी पर पाच सौ के नोट को तो ऐसा लग रहा था मानो कोई निगल गया हो |

" रूपेश ! तुम ऑफिस के कैमरे में नहीं चेक किये ? " परेशान हो कर मिस श्वेता ने पूछा |

" मैडम मैं गया था | मुझे आफिस में बोले कि जा के अपनी क्लास टीचर से बोलो | "

" ओ ० के ०  | तुम रेसेस में जाना आफिस और बोलना कि मिस श्वेता ने भेजा है | "

पूरे स्कूल व क्लास में कैमरा लगा था और कैमरे की आँख से बच पाना मुश्किल था चोर का |



रेसेस खत्म होने पर आया रूपेश |

" मैडम ! मेरे रूपये वीरेन्द्र ने चुराए हैं | मैंने देखा है कैमरे में |

वह क्लास में घुसा | मेरे डेस्क के पास गया | मेरा स्कूल बैग खोला | फिर उसने मेरा पेंसिल वाला बैग भी खोला | उसने पेन्सिल बैग से कुछ निकाला  और  उस चीज को नीचे गिरा दिया | फिर स्कूल बैग बंद कर के वह नीचे झूका | उसके बाद वह क्लास से बाहर निकल गया | .. मैडम ! जरूर उसने अपने जूते में छुपा लिया होगा | "

रूपेश ने कैमरे में दिखते दृश्य का वर्णन किया |

" मैडम ! बुलाऊं वीरेन्द्र को ? "

" ठीक है बुलाओ | " मिस श्वेता ने कहा |

तीन मिनट बाद वीरेन्द्र मिस श्वेता के सामने खड़ा था |

" वीरेन्द्र ! तुमने रूपेश के रूपये चुराए हैं ? " गरजी मिस श्वेता |

" नहीं मिस | " वीरेन्द्र तुरंत मुकर गया |

" अपने जूते उतारो | " फिर गरजी मिस श्वेता |

वीरेन्द्र ने बांये पैर का जूता-मोजा उतर दिया और खड़ा हो गया |

" दुसरे पैर का भी उतारो | " फिर गरजी मिस श्वेता |

अब बचने का चारा नहीं था वीरन्द्र के पास |

" हां मैडम , मैंने लिए थे रूपये | " मिमियाते हुये कहा वीरेन्द्र ने  और झुक कर वह अपने दायें पैर के जूते से पांच सौ का नोट निकाल कर पकड़ा दिया मैडम को |

" मैडम ! मेरे रूपये मिल गये | मत सजा दीजियेगा वीरेन्द्र को " रूपये मिलते ही रूपेश ने कहा |

मिस श्वेता ने रूपेश की बात अनसुनी कर दी |

" वीरेन्द्र ! मुझे मालूम है तुम्हारे पिता अच्छी नौकरी करते हैं ..फिर भी तुमने रूपये चुराये ... आखिर क्यों ? " नम्र स्वर में मिस श्वेता ने पूछा वीरेन्द्र से |

वीरेन्द्र चुपचाप खड़ा रहा | उसकी चोरी पकड़ी गयी थी | वह अपराधी था मैडम के सामने |

" क्या तुम जानते हो अब कुछ भी चोरी होगा तो क्लास में तुम्हारे मित्र कहेंगे कि वीरेन्द्र ने ही चुराये हैं | " फिर मिस श्वेता ने प्रश्न किया वीरेन्द्र से |

वीरेन्द्र की तो जबान तालू से चिपक गयी थी |

" अच्छा जाओ और कभी मत चुराना किसी का कुछ | "

" जी मैडम | "

और दोनों छात्र निकल गये स्टाफ रूम से |

मिस श्वेता ने सोंचा कि अगर कैमरे  में चोर न दिखता तो क्या होता |


सामने कापी का बंडल इन्तजार कर रहा था चेकिंग के लिये मिस श्वेता का अतः उन्होंने अपनी लाल कलम अपने पर्स से निकाल ली  |

ये० टी० एम० से पेमेंट


07 October 2014
15:35
-इंदु बाला सिंह

' घर का भाड़ा स्कूल और ट्यूशन फीस मेरे पेमेंट से चलता है .... अरे ! आगे पेमेंट हाथ में मिलता था तो  नोट छू पाती थी मैं ...अब तो सैलरी बैंक में जाती है तो नोट छूने का भी सुख नहीं मिलता है ..... मेरे हसबेंड  ए० टी० एम० से मेरी सैलेरी निकाल के लाते हैं | ' कापी चेक करना रोक के एकाएक मिसेज लाल बोल उठी |

स्कूल में नयी ज्वाईन की अध्यापिका श्रेया विस्मित सी मिसेज लाल का चेहरा देखने लगी  |

बेटे की मायें


07 October 2014
12:07
-इंदु बाला सिंह


' मेरा बेटा दिल्ली गया है ....कालेज के सर ले गये हैं उसे ....अपने पैसे से ले गये हैं वे | ' चाय में रोटी डुबोते हुये कामवाली ने गर्व से कहा |


' मेरे बेटे को तो आफिस के काम से फुर्सत ही नहीं मिलती ..... बड़ा अफसर है न | ....... अरे ! मर्दों को तो सैकड़ों काम रहते हैं | हमारी तरह वे घर में थोड़े न बैठते हैं | ' मालकिन ने अपने बायें कान के झुमका सीधा करते हुये कहा |

कन्या पूजन


02 October 2014
22:42
-इंदु बाला सिंह

' आज कितनी कमाई हुई ? ' अष्टमी की शाम को पड़ोस में रहनेवाली अपने स्कूल की छात्रा जया  से मैंने पूछा |

' सत्तर रूपये | पांच घर खाने गयी थी मैं | सब घर में खाना था तो मैं थोड़ा थोड़ा खायी हर घर में | '

' क्या करोगी इन रुपयों का ? ' मैंने  जया का मन टटोला |

' मिस मैं रबर ,शार्पनर और पेन्सिल खरीदूंगी | और बाकी रूपये मम्मी के पास रख दूंगी | '

और भींज गया मन मेरा |


इसका मतलब है इस बच्ची को पेन्सिल रबर भी शायद बड़ी डांट डपट के बाद मिलते हैं जबकि कपड़े तो यह लड़की इतने महंगे पहनती है |

टीचरी बुद्धि


28 September 2014
15:14
सुबह के सात बजे थे | लगभग सात से नौ वर्ष की आयु के तीन लड़के कंधे पर बोरा डाले गुजर रहे थे हमारे गेट के सामने से | उन लडकों की आंखों में चमक थी और वे दुबले पतले पर स्वस्थ दिख रहे थे |

भोर भोर मेरी टीचरी बुद्धि जागी |

" ए बच्चो सुनो ! "

वे तीनो लड़के तुरंत मुड़े और मेरी ओर बढ़ने लगे | उनकी फुर्ती देख के मैं समझ गयी कि वे सोंच रहे हैं यह औरत मुझे कुछ खाने को देगी क्यूंकि मैंने कितनी ही बार अपने मोहल्ले की दानी महिलाओं को ऐसे सड़क पर गुजरते बच्चों को पास बुला कर बिस्कुट या बचा खाना देते देखा था |

क्यूँ मैं किसी को निराश करूं यह सोंच मैंने तुरंत अपना प्रश्न उछाल दिया  -

" स्कूल जाते हो ? " हालांकि उनकी चाल ढाल से लग रहा था कि वे स्कूल नहीं जाते होंगे | पर फिर मैंने सोंचा कि शायद ये बच्चे आज के दिन स्कूल न जा कर कचरा बीनने निकले हैं | ऐसे भी अगर ये स्कूल नहीं जाते हैं तो इन्हें स्कूल जाना चाहिये | स्कूल में फ्री खाना मिलता है ,फीस नहीं लगती है | सुबह मेरे दिमाग में बाल कल्याण का कीड़ा कुलबुला उठा |

" नहीं , हम लोग स्कूल नहीं जाते हैं | " - तीनों लडकों ने एक साथ बड़ी सहजता व सरलता से उत्तर दिया |

" तुम लोग अपने घर में जिद करों और बोलो अपने कि हमको स्कूल जाना है | "

हमारे घर के पास ही एक बस्ती है और हमारे मुहल्ले के लोग दबी जबान में बोलते हैं कि इस बस्ती में चोर रहते हैं |

" ये लड़के भी जरूर उसी बस्ती के होंगे | " मैंने सोंचा |

" हम लोग पढ़ लिये हैं | और कितना पढेंगे | हम लोग स्कूल पास कर लिये हैं | " - तीनों लड़के तुरंत पलटे तेजी से और हंसते हुये निकल पड़े सड़क पर आगे |

उनके उत्तर चुभ गये मुझे और मेरी सुबह खराब हो गयी |

" क्यों बेट्टा ! समाज सुधार हो रहा था न | पहले खुद को सुधार और राह चलते लोगों को नसीहत देने की आदत छोड़ | "


मेरे मन ने चुटकी ली मेरी |