Saturday, September 20, 2014

स्कूल की इज्जत का सवाल है


20 September 2014
10:45
-इंदु बाला सिंह

रेसेस का समय था | बड़ी कक्षा के  छात्र  इधर उधर टहल रहे थे और छोटी कक्षा के छात्र दौड़ धूप कर रहे थे प्ले-ग्राउंड में |

ग्यारहवीं कक्षा की पूरी छुट्टी भी इसी समय होती थी | छात्र अपना बैग पीठ पर  लगाये अपनी अपनी स्कूटी निकाल रहे थे |

एकाएक भगदड़ मची | छात्रों का समूह स्कूल गेट की ओर दौड़ा |

शिक्षक शिक्षिकायें हतप्रभ |

विद्यालय के के स्टाफरूम में बैठे शिक्षक व शिक्षिकायें बरामदे में आ गये |

मिसेज प्रेरणा  की ड्यूटी थी रेसेस कंट्रोल की आज | वह मैदान में छात्रों की भीड़ में घुस गयी |

' अरे ! क्या हुआ ? '

' मिस ! ग्यारहवीं कक्षा का छात्र अपनी स्कूटी पर बैठ रहा था कि एक मिनी ट्रक धक्का मार दिया उसे | वह लड़का गिर गया जमीन पर | सब छात्रों ने ट्रक को घेर लिया है | '

'अरे ! ...ठीक है तो तुम कैसे जा रहे हो गेट के बाहर ? तुम तो नवम कक्षा के हो | लगाऊं अनुशाशनहीनता का चार्ज ! सब चलो अंदर | गेट पर भीड़ न करो | ' शिक्षिका ने कड़क कर कहा | उसे छात्रों को अनुशासित करना था |

' अरे मिस ! ये हमारे स्कूल की इज्जत का सवाल है | हमारे गेट के सामने हमारे स्कूल के छात्र को धक्का मार दिया | '

' ठीक है ....ठीक है .. मैं देखती हूं | तुमलोग चलों यहां से | '

इसी बीच मिसेज प्रेरणा को स्कूल के गेट से पुलिस स्कूल के अंदर आती दिखी |

' ओह ! जरूर किसी छात्र ने 100 नम्बर डायल कर दिया होगा | आजकल बच्चे कितने तेज हैं | '

वह छात्रों को डांट डांट के गेट से परे करने लगी |




Friday, September 12, 2014

घर की बहू


12 September 2014
22:06
-इंदु बाला सिंह

ब्याह के दो माह ही बीते थे |

कितनी खुश थी वह अपनी ननद के आगमन की खबर सुन कर | ननद भाभी का रिश्ता भी तो कितना प्यारा होता है |
ड्राइंग रूम में बैठी थी ननद अपने देवर संग और साथ में थी सास |

और भाभी को बुला कर एक पर एक डाँट चलती गयी ननद की | सास के सामने मूक सी बैठी रही बहू |

शायद सास ने अपनी बिटिया से जी भर के शिकायत की थी  बहू की |

घर में न पतिदेव थे न ससुर |

इसीबीच पड़ोसी आ गये | इन्हीं के माध्यम से विवाह तय हुआ था |

डर कर ननद ने अपने देवर से भाभी को अंदर कमरे में ले जाने कहा |

ननद के देवर संग भाभी एक कमरे में बंद कर दी गयी |

भाभी भौंचक सी रोने लगी पैर पड़ने लगी भाभी के देवर का | माफी मांगने लगी घर की बहू |

रात में ससुर नशें में धुत्त लौटे बहू से अपनी बिटिया की कारस्तानी  सुन ..हरि ॐ कह चुप रह गये |

पतिदेव चुप रहे |

और बहू के पिता घटना सुन बोले - पूछूं तुम्हारे ससुर से |


घर की बहू ने कहा - नहीं | रहना तो इसी घर में है मुझे | मुझे और ज्यादा तंग करेंगे वे |

Friday, September 5, 2014

अब तो पिता से मार पड़ेगी


02 September 2014
08:51

-इन्दुबाला सिंह

" ये क्या लिखा है डायरी में बाबूजी ! " रधिया ने मालिक से पुछा |

" तेरा बेटा क्लास में मारपीट किया है | स्कूल में तुझे बुलाया गया है | अपनी बिटिया को भेज देना स्कूल कल | " मालिक ने रधिया के बेटे की डायरी पढ़ कर कहा |

रधिया थी तो अनपढ़ कामवाली पर वह अपने बेटे को अंगरेजी मीडियम में पढ़ा कर बड़ा अपने मालिक के बेटे की तरह बड़ा आदमी बनाने के सपने देख रही थी |

दूसरे दिन बेटा उठा ही नहीं सबेरे स्कूल जाने को |

" उठ ! " रधिया ने अपने आठ वर्षीय बेटे को झकझोरा |

' मेरा सिर दर्द दे रहा है अम्मा .......आज स्कूल नहीं जाऊंगा मैं | " रुआंसी आवाज निकली बेटे ने |
हां ..हां ... आज तो तेरा सिर दर्द देगा ही | मैंने पढ़वा लिया है तेरा स्कूल से मिला कम्प्लेन लेटर मालिक से | " मैं अनपढ़ हूं पर बुद्धू नहीं |


हडबडा कर उठा रधिया का बेटा | वह समझ गया था अब तो मार पड़नेवाली है पिता से उससे |

आठवीं की सुलभा


01 September 2014
20:12

-इंदु बाला सिंह

" टीचर ! मेरे पापा से आप मेरी शिकायत मत कीजियेगा | मैं अब से मन लगा के पढूंगी | " सुलभा ने रस्तौगी मैडम से मनुहार की |

" और पूछेंगे तुम्हारे पापा मुझसे तुम्हारे बारे में तब मैं क्या बोलूंगी ? "

" टीचर ! मैंने अपने मोबाईल का सिम तोड़ के फेंक दिया है ..... अब तो मेरे पास मोबाईल भी नहीं है | " सुलभा ने फिर मनुहार की रस्तौगी मैडम की |

दो दिन पहले ही  फेसबुक से सम्बन्धित कम्प्लेन किया था एक सहपाठिन छात्रा ने मिसेज रस्तौगी को |
मोबाईल रखने के कारण डांट पड़ी थी सुलभा को |

" और क्या क्या बोलूंगी मैं ! "  मिसेज रस्तौगी ने सहज ढंग से कहा |

और दस मिनट में सुलभा की गुसिल आवाज आवाज आयी -

" किसने मेरा नम्बर दिया था रनजीत को ...कल मेरा दिमाग चाट रहा था रात में | "


ब्लैक बोर्ड पर गणित हल करती रस्तौगी मैडम पलट कर घूरी सुलभा को   आठवीं कक्षा की इस छात्रा  की परिपक्वता और राजनीति ने उसे एक पल के लिये अचम्भे में डाल दिया |

दीवारों का मोह


28 August 2014
12:35

-इंदु बाला सिंह


पिता के गुजर जाने के बाद श्री शर्मा को घर खाली करने के लिये कहा गया | नया मकान मालिक हो तो किरायेदार भी तो नया रहना चाहिए अन्यथा रौब जमाना मुश्किल होता है | बच्चे जिस घर में बड़े हों आखिर मोह हो जाता है दीवारों से व्यक्ति को |

मकान खाली करने के लिये इतना परेशान किया बेटों ने कि श्री शर्मा मजबूरी में घर खाली किये पर मकान में दूर मिला |

' अरे ! क्या बात है ! अकेली और पैदल ! ' एकाएक दोपहर में सड़क से मिसेज शर्मा को गुजरते देख मैं  चौंक पड़ी |

' हम आपके पीछेवाली लाईन में आ गये हैं | ' खुश हुयी मैं |

मेरा गेट खोल कर सब्जीवाले की आस में सड़क निहारना और मिसेज शर्मा का सड़क से गुजरना दोनों एक साथ हुआ | शायद हमारा मिलना भी किस्मत थी | अन्यथा किसे किसकी याद रहती है |

' इस समय हमारे घर में मेरे दोनों बेटे बहू और बेटी दामाद आये हैं | आईये कभी | वे सब और एक सप्ताह रहेंगे | ' चहक कर मिसेज शर्मा ने कहा | लेकिन बात करते समय  हसरत भरी निगाह आज भी उठीं अपने पुराने मकान पे |


खुश हुयी मैं | आखिर उसे अपना पुराना मकान न मिला था किराये में तो क्या हुआ पुराने मुहल्ले तो वह वापस आ गयी थी |