21 August
2014
11:55
-इंदु बाला
सिंह
आफिस
से घर लौटते वक्त राह में कालेज का नोटिस बोर्ड देखना सुनीता की आदत सी बन गयी थी | क्या पता किसी दिन निकल जाय उसकी बिटिया का नाम
एडमिशन के सेलेक्शन लिस्ट में |
और खुशी से
विह्वल हो गयी थी सुनीता पढ़ कर अपनी बेटी का नाम नोटिसबोर्ड में लगे एडमिशन के
सेलेक्शन में उस दिन |
उसने मन ही मन
सोंचा आज तो छ: तारीख है और एडमिशन का डेट तो बीस तारीख है , तब तक कालेज से
इन्टीमेशन कार्ड उसके घर में आ ही जाएगा |
तारीखें बदलती
गयीं पर न आया सुनीता के घर में कालेज से इन्टीमेशन कार्ड |
परेशान सुनीता
बेटी संग बीस तारीख को एडमिशन के सारे डाक्यूमेंट संग कालेज पहुँची |
पहलू बदलती
रही एडमिशन रूम के बाहर हर पल सुनीता |
वह मन ही मन
सोंची कि अगर उसकी बेटी का नाम एडमिशन रूम अंदर से न बुलाया गया तो जरूर वह जा कर कालेज के प्रिंसिपल को
कम्प्लेन करेगी क्यूंकि उसकी बिटिया का नाम कालेज के नोटिसबोर्ड पर अब भी चमक रहा
था |
ये लो आखिर
उसके बिटिया का नाम पुकारा दरवाजे पर खड़े कर्मचारी ने |
अंदर बैठे
लेक्चरर ने सुनीता से इन्टीमेशन
कार्ड मांगा |
अब सुनीता ने
बताया कि उसे तो नहीं मिला इन्टीमेशन कार्ड पर नोटिसबोर्ड पर उसकी बिटिया का नाम लिखा है |
परेशान
लेक्चरर ने एक फाईल उठाया जिसपर चमक
रहा था उसकी बिटिया का नाम " समृद्धि
" |
और जब उस
लेक्चरर ने फाईल के पन्ने पलटा तो उसमें
था उसकी बिटिया का था वह " इन्टीमेशन कार्ड " जो डाक में डाला ही नहीं
गया था |
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