Monday, August 11, 2014

कलेक्टरी की परीक्षा


12 August 2014
08:27
-इंदु बाला सिंह

ट्रेन लेट थी |

जब तक वह परीक्षा स्थल पर पहुंची कालेज का गेट बंद हो गया था पर हाथ में एडमिट कार्ड देख कर उसके परीक्षार्थी बेटे के लिये पुलिस ने गेट खोल दिया |

उसकी जान में जान आयी |

अब वह बैठने के लिये इधर उधर स्थान तलाश करने लगी |

सामने एक बड़ा खेल का मैदान था पर उसमें कहीं बैठने की जगह न थी | इस मैदान का गेट भी बंद था | हार कर गेट के बगल में बनी पुलिया पर वह बैठ गयी |

उसके लिये यह शहर अनजाना था |  उसकी अपनी पहचान था केवल उसका बेटा जो हाथ में यू० पी० एस० सी० का एडमिट कार्ड लिये अंदर कालेज  में कलक्टर बनने का सपना लिये आँखों में परीक्षा दे रहा था   |

कालेज के बंद गेट से  सिपाही अंदर बाहर हो रहे थे और वह चौकन्नी सड़क पर आने जानेवालों को देख रही थी |

गर्मी का मौसम था | सिर पर सूरज चढ़ गया | गर्मी से वह कभी खड़ी होती तो कभी बैठ जाती | सिर पर के आंचल का पल्लू भी बेकार हो गया था | वह रुक रुक कर बोतल के ग्लूकोज का पानी से घूंट ले कर खुद को तर कर  रही थी |

इसी बीच एक पुलिस से भरी जीप आई | गेट खुला कालेज का | सिपाही अंदर गये | एक तीन स्टार वाला सिपाही भी था उस झुण्ड में | जीप बाहर खड़ी रही |

कोल्डड्रिंक का ट्रे लिये एक सिपाही अंदर घुसा गेट से |

उसने कोल्डड्रिंक देख आँखें फेर ली | " न जाने क्या सोंचें सिपाही " , उसने मन ही मन सोंचा

थोड़ी देर में सिपाही बाहर निकले | जीप में बैठ कर चल गये |

वह गेट सामने से हटी नहीं |

दो घंटे बीत गये | वह यूं ही उसी गर्म पुलिया पर अपना स्थान बदलती रही  |

एकाएक उसकी निगाह गेट से बाहर निकले सिपाही पर पड़ी |

एक सिपाही हाथ के इशारे से उसे गेट के अंदर बुला रहा था |

" आह ! .... " उसने मन ही मन सोंचा | " अब उसे अंदर प्रवेश करने का परमिशन मिल रहा है | "

हाथ का बड़ा सा टिफिन और पानी का बैग थामे थामे कालेज गेट से अंदर घुस गयी |

अंदर में गेट के पास टेंट गड़ा था | सामने फाईबर की कुर्सी पर एक तीन स्टार वाला बैठा था | बगल में चार बेंच थे | बेंचों पर सिपाही बैठे थे |

सिपाही ने उसे एक बेंच पर बैठने का इशारा किया |

अब वह चिलचिलाती धूप से हट के टेंट की छांव में आ गयी थी |

मन में आक्रोश था उसके , " देखना एक दिन मेरा बेटा बड़ा कलक्टर बनेगा और सिपाहियों तुम उसका आदेश मानोगे | "

" आप कहाँ से आयी हैं .." एक पुलिस के मुंह से निकली आवाज उसे सहानुभूति से भरी सी लगी और वह टूट गयी  |

घबरा के पुलिसवाला दौड़ के पानी का एक ग्लास लाया |


वह औरत गिलास का पानी एक सांस में पी के तृप्त हुयी क्योंकि अब वह छाँव पलिस के साथ सुरक्षित थी और कालेज के अंदर उसका बेटा कलक्टर बनने के लिये परीक्षा दे रहा था |

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