13 August
2014
09:45
लोक कथा
-इंदु बाला
सिंह
एक अंधा
भिखारी था |
एक दिन
जब वह सड़क के बगल से अपने हाथ में
अल्युमिनियम का बड़ा सा कटोरा लिये गुजर रहा था तब एक घर की मालकिन ने उसे बुला कर
भात दाल खाने को दिया | भिखारी खाना खाने के बाद जब गेट के पास से उठाना चाहा तब
उठ न पाया |
" अरे !
.... कोई मुझे उठा दो जमीन से | ....... भगवान के नाम पे तुम मुझे उठा दो जमीन से
....... मुझे सड़क पार करा दो भगवान के नाम पे .....| " चिल्लाने लगा भिखारी |
किसी ने उसकी
बात पे ध्यान न दिया |
इसी समय बगल
से एक अठारह वर्षीय छात्र अपने सहपाठियों के साथ स्कूल के युनिफोर्म में गुजरा |
एक भिखारी को
चिल्लाते देख देख वह मित्रों से अलग हो गया और उस भिखारी को हाथ पकड़ कर उठाया और
उसे रास्ता पार करा दिया |
उस छात्र के
मित्र रुके रहे उसके लिये ,और जब वह लौटा तब सब एक साथ अपनी स्कूल बस पकड़ने के
लिये चल पड़े |
इधर अंधे
भिखारी के मुंह से आशीर्वचनों की बरसात हो रही थी .......
" भगवान
तेरा भला करे ...... तू बड़ा आदमी बने .... तेरा घर धन दौलत से भरे ...... तेरा दिल
हर दुखी के लिये तडपे ....... "
घर के सामने
सड़क के किनारेवाले दुकानदार से से रहा न गया |
वह कह उठा .....
" अरे
अंधा बूढ़ा ! तुझे तो सामनेवाले घर की मालकिन ने खाना खिलाया है और तू किसे
आशीर्वाद दे रहा है ? "
" अरे भई
! ... मैं अंधा हूं तो क्या हुआ ...... उपरवाला तो अंधा नहीं है ...... वह देख रहा
है न ...... मेरे आशीर्वाद को उसके पास ही भेजेगा जिसने मेरे जी को जुड़ाया है |
"
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