04 July
2014
06:59
हमारे घर के
उपर में ' जीवन ' बैंक का कर्मचारी रहता है | महोदय ने घर के में गेट में एक दूसरा
ताला लगा दिया था | अब सुबह सुबह बिटिया के आफिस जाते समय जब ताला खोलने चली तो
देखी सदा लगायेजानेवाला ताला दुसरे हुक में लटका है और गेट में एक दूसरा ताला लगा
है |
मैंने एक अपने
एक भाड़ेदार का दरवाजा खटखटाया ... ' आपने गेट का ताला बदल दिया है ? "
" नहीं
तो ! " उत्तर मिला |
फिर मैं उस '
जीवन ' बैंक के कर्मचारी को रिग करते हुये सीढियां चढ़ने लगी |
दूसरी तरफ से
किसी ने फोन उठाया |
" मिस्टर
मोहन "
उधर से कोई
कुछ बोला |
मैं अपने धुन
में थी |
" आपने
गेट में ताला बदल दिया है | "
उधर से कोई
कुछ बोला |
आप बाहर आईये
|
मैंने फोन काट
दिया |
मुझे लगा
मैंने गलत नम्बर रिंग किया था |
मैंने फिर
रिंग किया |
किसी ने उठाया
|
अब तक मैं
दरवाजे तक पहुंच गयी थी |
दरवाजा
भड़भड़ाने लगी |
" मोहन !
मोहन ! "
दरवाजा भड़ाक
से खुला |
मोहन निकला |
" अरे भई
! आपने ताला बदल दिया है ? देरी हो रही है मुझे ! "
मोहन नीचे
झांका |
" ओहो !
असल में भाई ने गलत ताला लगा दिया है | "
गेट का ताला
एक लटका है वहीं और नया ताला लग गया यह राज तो भई वो कर्मचारी ही जाने |
मोहन ने
तत्परता से खुद ताला खोला |
"
आपके नम्बर पर कौन उठा रहा है फोन ? " मैंने पूछा |
" असल
में न वो नम्बर किसी और को मिल गया है | मेरा प्रोफाइल बैंक में चेंज हो गया है न
| मैं आपको अपना नया नम्बर देता हूं | "
बात कर ही रही
थी तबतक डायलड नम्बर से काल बैक आया |
" आपको
मोहन का नम्बर चाहिए ! "
" आप कौन
बोल रहे हैं ? " मैंने पूछा |
" मैं '
जीवन ' बैंक में ही काम करता हूं | आपको मोहन का नम्बर चाहिए ? "
" ओह !
नो थैंक्स | मोहन जी इस समय मेरे पास ही खड़े
हैं | " और मैंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया |
फोन पर हो रहे
अपने बैंक के कर्मचारी का वार्तालाप मोहन खड़ा खड़ा सुन रहा था फिर वह अपना ताला ले
कर उपर चला गया |
मैंने सोंचा कस्टमर भी तो परेशान होते होंगे जब
परिचित चेहरा फोन पर न पाते होंगे | कस्टमर को व्यक्ति पर ज्यादा विश्वास होता है
|
' जीवन ' बैंक
में बैंक सर्वोपरि होता है कर्मचारी नहीं |