ठेकेदारी
मिट गयी थी ध्यान वर्मा की | शहर में काम
का अभाव था | कर्ज कर्ज पर कर्ज चढ़ रहा था वर्मा जी पर | आखिर मकान बेच कर
कर्जमुक्त हुए वर्मा जी |
मकान खरीदा पाकिस्तान से विस्थापित सरदार जी ने अपनी बेटी दामाद के लिए |
चार वर्ष में
ही मकान बना ध्यान वर्मा का विवाह हुआ , दो बच्चे हुए और मकान भी बिक गया |
सरदार
जी ने विस्थापन का कष्ट झेला था |
" बिटिया
! मेरा घर भी तेरा घर है ..जब भी इस शहर में आना मेरे घर में ठहरना | " मकान
खाली करवाते वक्त सरदार जी वर्मा जी की पत्नी के सर पर आशीर्वाद के लिए हाथ फेरते
वक्त कह उठे |
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