Thursday, December 5, 2013

बिटिया मेरा घर भी तेरा है !

ठेकेदारी मिट गयी थी ध्यान वर्मा की | शहर में काम का अभाव था | कर्ज कर्ज पर कर्ज चढ़ रहा था वर्मा जी पर | आखिर मकान बेच कर कर्जमुक्त हुए वर्मा जी |

मकान खरीदा पाकिस्तान से विस्थापित सरदार जी ने अपनी बेटी दामाद के लिए |
चार वर्ष में ही मकान बना ध्यान वर्मा का विवाह हुआ , दो बच्चे हुए और मकान भी बिक गया |

सरदार जी ने विस्थापन का कष्ट झेला था |


" बिटिया ! मेरा घर भी तेरा घर है ..जब भी इस शहर में आना मेरे घर में ठहरना | " मकान खाली करवाते वक्त सरदार जी वर्मा जी की पत्नी के सर पर आशीर्वाद के लिए हाथ फेरते वक्त कह उठे |

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