Tuesday, December 17, 2013

आलसी भालू और मेहनती भालू ( लोक कथा }

दो भालू थे |
एक आलसी भालू था और एक मेहनती भालू था |
मेहनती भालू दिन भर घूमता था और शहद इकठ्ठा करता रहता था | वह शहद खाता था और भविष्य के लिए अपने कमरे के ड्रम में डाल देता था |
आलसी भालू दिन भर धूप सेंकता रहता था | अपने घर के सामने लेटा रहता था |
आलसी भालू ने अपने कमरे से मेहनती भालू के कमरे तक जमीन के अंदर अंदर एक सुरंग खोद दी थी |उस सुरंग से उसने एक पतली पाईप का एक छोर शहद वाले ड्रम में डाल दी थी और दूसरी छोर अपने कमरे में रक्खी थी | जब मेहनती भालू घर से बाहर जाता था तब आलसी भालू मेहनती भालू के ड्रम से शहद मुंह से पाईप की सहायता से सोख कर पी जाता था |
एक दिन मेहनती भालू जब अपने ड्रम को देखने गया  | वह सोंचा था कि काफी शहद इकठ्ठा हो गया होगा पर उसका ड्रम दस प्रतिशत ही भरा था शहद से |
आलसी भालू बहुत दुखी हुआ |
उसने अपनी समस्या अपनी मित्र लोमड़ी को बताई |
लोमड़ी मेहनती भालू के घर पहुंची | उसने उसके घर का मुआयना किया | बाहर सोये आलसी भालू को देख उसकी भौं चढ़ गयी  |
लोमड़ी ने मेहनती भालू से निश्चिन्त हो जंगल जाने को कहा | वह खुद  भालू के घर में अकेली रह गयी |
लोमड़ी ने घर में चूल्हे एक डेकची में पानी चढ़ा दिया |
मेहनती भालू को जाते देख आलसी भालू अपने घर में घुसा और शहद सोखने के लिए पिप में मुंह लगाया |
उधर लोमड़ी ने खौलता  पानी ड्रम में डाल दिया |
और शहद सोखने लगे आलसी  भालू का मुंह जल गया |
इस घटना के बाद से आलसी भालू ने कभी शहद नहीं चुरायी  और वह खुद शहद इकट्ठा करने जंगल जाने लगा |






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