दो
भालू थे |
एक आलसी भालू
था और एक मेहनती भालू था |
मेहनती भालू
दिन भर घूमता था और शहद इकठ्ठा करता रहता था | वह शहद खाता था और भविष्य के लिए
अपने कमरे के ड्रम में डाल देता था |
आलसी भालू दिन
भर धूप सेंकता रहता था | अपने घर के सामने लेटा रहता था |
आलसी भालू ने
अपने कमरे से मेहनती भालू के कमरे तक जमीन के अंदर अंदर एक सुरंग खोद दी थी |उस
सुरंग से उसने एक पतली पाईप का एक छोर शहद वाले ड्रम में डाल दी थी और दूसरी छोर
अपने कमरे में रक्खी थी | जब मेहनती भालू घर से बाहर जाता था तब आलसी भालू मेहनती
भालू के ड्रम से शहद मुंह से पाईप की सहायता से सोख कर पी जाता था |
एक दिन मेहनती
भालू जब अपने ड्रम को देखने गया | वह
सोंचा था कि काफी शहद इकठ्ठा हो गया होगा पर उसका ड्रम दस प्रतिशत ही भरा था शहद
से |
आलसी भालू
बहुत दुखी हुआ |
उसने अपनी
समस्या अपनी मित्र लोमड़ी को बताई |
लोमड़ी मेहनती
भालू के घर पहुंची | उसने उसके घर का मुआयना किया | बाहर सोये आलसी भालू को देख
उसकी भौं चढ़ गयी |
लोमड़ी ने
मेहनती भालू से निश्चिन्त हो जंगल जाने को कहा | वह खुद भालू के घर में अकेली रह गयी |
लोमड़ी ने घर
में चूल्हे एक डेकची में पानी चढ़ा दिया |
मेहनती भालू
को जाते देख आलसी भालू अपने घर में घुसा और शहद सोखने के लिए पिप में मुंह लगाया |
उधर लोमड़ी ने
खौलता पानी ड्रम में डाल दिया |
और शहद सोखने
लगे आलसी भालू का मुंह जल गया |
इस घटना के
बाद से आलसी भालू ने कभी शहद नहीं चुरायी
और वह खुद शहद इकट्ठा करने जंगल जाने लगा |
No comments:
Post a Comment