1990
"
अरी कुंती ! क्या करेगी इतना पैसा जमा करके ? " मै ने एक
दिन हंस कर कहा कुंती से |
" अरी
मेरी सहेली ! सच में तू है बड़ी भोली | बुढ़ापे का सहारा तो पैसा है | पैसा तेरे पास
न रहा तो दुनिया को क्या अपनों को भी भारी पड़ने लगेगी तू | मेरी मान भले एक कपड़ा
पहन तू पर बैंक में रपये जरूर रखियो तू | " कुन्ती ने समझाया मुझे |
दो माह
बाद मैंने सुना | घर की सीढियां उतरते
वक्त पैर फिसलने के कारण कुंती की मौत हो गयी है |
इस खबर
ने मुझे सन्न कर दिया |
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