Saturday, September 7, 2013

बाबा ! मुंह खोलिए

" बाबा ! मुंह खोलिए | "  छठी कक्षा में पढ़नेवाली पोती श्रेया ने कहा | उसके बाबा हमेशा घर के बरामदे में लेटे रहते थे आंख बंद कर के | श्रेया की कमाई उसे स्कूल में मिला मुफ्त का नाश्ता था | उसे हर रोज स्कूल में दो केला और चार बिस्कुट मिलते थे | बिस्कुट वो कापी के पन्नों के बीच में रख कर लाती थी अपने दादा के लिए |
" क्या है ? " 
" दादा जी ! बिस्कुट है | मैं आपके लिए स्कूल से लाई हूँ | "
दादा जी मुंह खोल देते थे | उस खुले मूंह में बिस्कुट डालने में उसे बड़ा आनंद आता था |

इस घटना की मिठास बीस वर्ष बाद आज के दिन भी श्रेया के मन  में मौजूद है |

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