संस्कृत
की अध्यापिका श्रीमती श्रीनिवासन दक्षिण भारतीय का बेटा भी मां के ही विद्यालय में छठी कक्षा में पढ़ता था |
सुना था
सहकर्मियों से उनके घर जाओ तो वह होटल से मंगा कर सबको नाश्ता कराती है | वह भाई
भाभी के साथ रहती है | भाई भाभी जब खा कर कमरे में चले जाते हैं तब अपना खाना
निकाल कर बेटे के साथ खाती है |
" आप के
पति कब एक्सपायर हुए ? " वह ससंकोच पूछ बैठी उस संस्कृत की अध्यापिका से एक
दिन कामन रूम खाली पा कर | उसने सहज ढंग
से उसने उत्तर दिया |
" दीदी !
मेरे पति रेलवे में काम करते थे |शादी के एक माह बाद ही एक्सीडेंट हो गया मेरे पति
का | मेरे पिता ससुराल से मुझे लाकर अपने पास रख लिए | जिस घर में मैं रहती हूँ
उसे मेरे पिता ने मेरे और मेरे भाई के नाम कर दिया था | पर कौन पूछता है बहन को ?
मेरा बेटा बड़ा हो जायेगा तब मैं अपने लिए एक अलग घर खरीद लूंगी | "
तीन वर्ष बाद
उस शहर को छोड़ कर चली गयी वह |
दस वर्ष बाद
एक दिन उस संस्कृत की अध्यापिका की खबर मिली |
उस शिक्षिका
ने जमीन खरीद कर अपना घर बनवा लिया है और उसका बेटा कालेज में पढ़ रहा है |
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