Monday, August 26, 2013

नियति से युद्ध

दामाद के गुजर जाने के बाद पिता ने अपने घर में इकलौती बेटी राजश्री को रख लिया |

पिता  की मृत्यु के बाद भाई ने बहन को आउट हाउस में जगह दे दी | घर में रहने से घर के हक की समस्या थी | फिर आउट हाउस तो गैरेज के उपर छोटा सा एक कमरे का मकान था | गैरेज ऐसी जगह बना था जहां कमरा  बनाने का परमिशन ही नहीं था | जब वह गैरेज टूटता तो राजश्री को स्वयं उस कमरे को छोड़ना ही पड़ता | लोगो की निगाह में भी अच्छा बना भाई | वैसे भी महिलाओं की समस्या से निगाह मोड़ने  की सबकी आदत है |
 प्राइवेट संस्थान में कम तनख्वाह थी मुश्किल से चला घर और मान अपमान ताक पर रख के बीमारी आरामी झेलते झेलते अपनी दोनों बेटियों की राजश्री ने देख रेख की  |

" माँ ! मैंने एक मकान देख लिया है | तीन कमरे का मकान है |..हमलोग वहीं शिफ्ट हो जायेंगे |...सम्मान पूर्वक मुहल्ले में तो रहेंगे |...चिंता न करो माँ हम दोनों काम कर रहे हैं |...प्राईवेट नौकरी ही सही | एक की छूटेगी तो दुसरे की तो रहेगी न | "

तीनों प्राणी एक नई जिन्दगी की आशा में उस आउट हाउस को छोड़ दिए |


उस आउट हाउस  में भाई ने नौकरानी के परिवार को जगह दे दी |

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