Sunday, August 4, 2013

पागल सुधीर

माता पिता मस्त थे बेटा सुधीर भी अपनी दुनियां में खुश था | मेट्रिक भी न पास कर सका वह |

ठगी और चोरी चमारी भी न सीख सका सुधीर | सीधा सादा युवा आज की दुनिया का स्वाभिमानी मूर्ख बन गया था |रिश्तेदार उसे पागल कहते थे | पत्नी रख न पाया माँ की भी मृत्यु हो गयी | वैसे लगभग चार करोड़ मकान का मालिक सुधीर और उसके बड़े भाई थे |

खुद काम ढूंढ न पाया और पिता भी उसे किसी काम में लगवा न पाए |

एक दिन देखा मैंने सड़क के किनारे बैठ कर सुधीर किसी की हजामत बना रहा है | वैसे कोई काम छोटा नहीं होता पर उस क्षत्रिय पुत्र को हजामत बनाते देख दुख हूआ |


फिर सुना शहर के एक क्लब में बेयरे की नौकरी लग गयी है उसे | पी ० एफ ० और मेडिकल फैसिलिटी भी मिल रही है उसे | पी ० एफ ० का नामिनी उसने अपने भाई के पुत्र को बना दिया है |

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