Monday, June 3, 2013

अभिवादन ( लघुकथा )

दुकान के सामने से गुजरते हुए एक दुबली पतली सी औरत को गोद में सात - आठ महीने के बच्चे को पकड़े अपनी तरफ आते देख मैं उसे पहचानने की चेष्टा करने लगी | जब तक मैं तक उसे पहचानूं  वह अपने बच्चे समेत झुक कर मेरे  चरण स्पर्श कर ली ...
एकाएक मेरे दिमाग में उसका नाम कौंधा ..'' अरे ! जयिता ! ''
यह मेरी पुरानी विद्यार्थी थी |
दुकानों की कतारों के सामने उसे इस प्रकार अभिवादन करते देख जहाँ मुझे थोड़ी खुशी हुयी वहीं झेंप भी लगी |
...''अरे ! तेरी शादी हो गयी ? ...कहाँ रहती है ? ''
...''यहीं ..पास में ही घर है | ''
...'' चलो अच्छा है ...मैका और ससुराल एक ही शहर में है | ''

मैं आगे बढ़ चली |

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