दुकान
के सामने से गुजरते हुए एक दुबली पतली सी औरत को गोद में सात - आठ महीने
के बच्चे को पकड़े अपनी तरफ आते देख मैं उसे पहचानने की चेष्टा
करने लगी | जब तक मैं तक उसे
पहचानूं वह अपने बच्चे समेत झुक कर
मेरे चरण स्पर्श कर ली ...
एकाएक मेरे
दिमाग में उसका नाम कौंधा ..'' अरे ! जयिता ! ''
यह मेरी
पुरानी विद्यार्थी थी |
दुकानों की
कतारों के सामने उसे इस प्रकार अभिवादन करते देख जहाँ मुझे थोड़ी खुशी हुयी वहीं
झेंप भी लगी |
...''अरे !
तेरी शादी हो गयी ? ...कहाँ रहती है ? ''
...''यहीं
..पास में ही घर है | ''
...'' चलो
अच्छा है ...मैका और ससुराल एक ही शहर में है | ''
मैं आगे बढ़
चली |
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