Sunday, September 23, 2012

फूलवाला


' फूलवाला !....फूलवाला ! '

एक छोटे डंडे में मल्ली फूल छोटी छोटी लड़ी लटका कर वह हर रोज शाम के पांच से साढ़े पांच के बीच हमारे मोहल्ले में आवाज लगाया करता था | उसकी आवाज आँखों में मेरी चमक ला देती थी | एक लड़ी का मूल्य था पचास पैसे | हर रोज मैं उस से फूल की एक लड़ी खरीदती थी और अपनी दो वर्षीय बिटिया के बालों में क्लिप से लगा देती थी | उसका खिला चेहरा देख मन प्रसन्न हो जाता था |
कुछ ही दिनों में हर रोज पचास पैसे खुचरा फूल के नाम से अलग रखना मुझे कठिन लगने लगा |

' सुनो ! ऐसा करो हर महीने एक साथ पैसे ले जाना | ' ---- एक दिन मैंने फूलवाले से कहा |
' ठीक है ..दीदी ! ' ----- वह खुश हो गया था | उसे एक ऐसा ग्राहक मिल गया जो उससे पूरे महीने फूल खरीदेगा |

तीन माह तक फूलवाला आता रहा | एक दिन मैंने सुना दंगा छिड़ा है | फूलवाला भी आना बन्द हो गया | दिन बीते मास बीते वर्ष भी बीत गया पर वो फूलवाला आया | मै सोंचने लगी कहीं चला गया शायद | अवचेतन मन में डर सा लगा | कहीं किसी ने मार तो नहीं दिया !
फूलवाला आया कभी |
याद आता है आज भी वो फूलवाला |

No comments:

Post a Comment