Sunday, September 2, 2012

बैंगन का भर्ता ( लोक कथा )

एक संयुक्त परिवार था | घर में चार बहुरानियाँ थीं |
छोटी बहू का मन बहुत दिनों से बैंगन का भर्ता और भात खाने का कर रह था | पर बने कैसे ? सबका मन करे तब न बने |
परेशान बहू ने एक दिन एक बैंगन चूल्हे में डाल कर भून लिया | किसी को पता भी न चला | एक अलग हंडी में उसने भात निकल कर रख लिया | अब बैंगन का भर्ता लहसुन मिर्च डाल कर खूब स्वादिष्ट मनालायक बना कर भात की हांडी में छुपा कर रख दिया |
पर अब भला वो खाए कहाँ ?
उसने सोंचा पूजा घर में कोई नहीं जाता है इस समय वहीं जा कर खा लेती हूँ |
पूजा घर में बैठ कर बड़ी तृप्ति से वह खायी अपना भर्ता भात | खाने के बाद उसकी निगाह भगवान की मूर्ति पर पड़ी | उसने देखा भगवान ने आश्चर्य से अपने दांतों तले उंगली दबा ली है |
उसने पूजा घर जूठा कर दिया था |
छोटी बहू को बड़ा गुस्सा आया |
....मुझे खाने का मन था | मुझे कहीं जगह न मिली तुम्हारे घर आयी तो तुमको भी बुरा लग गया |
गुस्से में उसने अपनी हंडी भगवान के मुंह पर दे मारी |
भगवान के दांत से उनकी उंगली निकल गयी |
अब बहू ने चैन की साँस ली |

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 29 अप्रैल 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
    

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