Saturday, April 7, 2012

टिड्डा और केंचुआ ( लोक कथा )

बात उस ज़माने की है जब टिड्डा और केंचुआ  दोनों जमीन पर चलते थे |टिड्डा की आदत थी हमेशा उछलना उड़ने की चेष्टा करना | केंचुआ  उस पर हँसता था  | वह कहता था कि वे दोनों जमीन पर रेंगनेवाले जीव हैं | अत: उसे इस तरह की बेवकूफी नहीं करनी चाहिए | उसे भी जमीन पर रेंगना चाहिए और उसकी तरह  मस्त रहना चाहिए | पर टिड्डा उसकी बात कभी नहीं सुना | वह हमेशा उड़ने की कोशिश करता रहा और केंचुआ जमीन पर रेंगता रहा | एक बार टिड्डा ने इतनी जोर की उछाल मारी की वह एक छोटे पेड़ की टहनी पर पहुँच गया | अब टिड्डा  बड़ा खुश हो गया | वह एक टहनी से दूसरी टहनी पर कूदने लगा | केंचुए ने उसे आश्चर्य से देखा | कुछ दिनों बाद बरसात का मौसम गया | बरसा होने लगी टिड्डा  उड़ कर पेड़ की पत्तियों में छुप गया | पर केंचुआ भीजने लगा | अपने को बचाने के लिए वह मिट्टी में घुसने की चेष्टा करने लगा | तब से टिड्डा पेड़ पर रहता है और केंचुआ जमीन में |

No comments:

Post a Comment