बात उस ज़माने की है जब टिड्डा और केंचुआ दोनों जमीन पर चलते थे |टिड्डा की आदत थी हमेशा उछलना उड़ने की चेष्टा करना | केंचुआ उस पर हँसता था | वह कहता था कि वे दोनों जमीन पर रेंगनेवाले जीव हैं | अत: उसे इस तरह की बेवकूफी नहीं करनी चाहिए | उसे भी जमीन पर रेंगना चाहिए और उसकी तरह मस्त रहना चाहिए | पर टिड्डा उसकी बात कभी नहीं सुना | वह हमेशा उड़ने की कोशिश करता रहा और केंचुआ जमीन पर रेंगता रहा | एक बार टिड्डा ने इतनी जोर की उछाल मारी की वह एक छोटे पेड़ की टहनी पर पहुँच गया | अब टिड्डा बड़ा खुश हो गया | वह एक टहनी से दूसरी टहनी पर कूदने लगा | केंचुए ने उसे आश्चर्य से देखा | कुछ दिनों बाद बरसात का मौसम आ गया | बरसा होने लगी टिड्डा उड़ कर पेड़ की पत्तियों में छुप गया | पर केंचुआ भीजने लगा | अपने को बचाने के लिए वह मिट्टी में घुसने की चेष्टा करने लगा | तब से टिड्डा पेड़ पर रहता है और केंचुआ जमीन में |
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