Monday, April 23, 2012

हमें भी जीना है ! ( कहानी )

कंधे पर फावड़ा रख कर घर के सामने से गुजरते मजदूर को देख अवधेश प्रसाद ने आवाज लगाई |
--- ए माली !
--- काम करोगे ?
--- जी बाबूजी |
बगान  की ओर इशारा करते हुए वे कह उठे |
--- यहाँ से वहाँ तक घास निकालनी है |
--- कोना में भी सफाई करनी है क्या ?
उसने  केले के झुरमुट की ओर इशारा कर रामदीन ने कहा | उसे उस झुरमुट में सांप बिच्छू का भय था |
--- हाँ यह तो तुमको खुद समझना चाहिए |.....बाबूजी ने गंभीर मुद्रा में कहा |
--- हाँ ! तो कितना लोगे ?
--- बाबू जी एक सौ अस्सी लूँगा |...रामदीन ने सोंच विचार कर कहा |
--- इतना ! अरे यह तो बहुत अधिक है भाई | नब्बे रुपये में सफाई कर दो |
--- नहीं बाबूजी ! एक के हिस्से में साठ रूपया भी नहीं आएगा तो क्या काम करेंगे |
--- देख लो ! सोंच लो ! जब मन करे कर काम कर जाना |
दस दिन बीत गए घास और भी बड़ी हो गयी | कोई काम करने वाला गुजरा |
एक दिन बाजार जाते समय रामदीन दिखा अवधेश  प्रसाद को |
--- अरे भाई ! तुम्हारे नाम से काम पड़ा है | दूसरे को मैंने नहीं बुलाया है |
दूसरे दिन तड़के रामदीन अपने दोनों साथियों के साथ बाबूजी के गेट पर था |
--- अरे ! आ गए रामदीन !
--- बाबू एक सौ अस्सी दोगे !
--- ऐसा करो आधे बागान की सफाई करो | तुम्हारी बात ही सही ! नब्बे रुपये दे दूँगा |
--- जैसी मर्जी आपकी बाबू !
और रामदीन अपने दोनों साथियों मिल कर फटाफट कम खतम किया और नब्बे रूपये ले कर चलता बना |
आठ बजे रमैया घर का काम करने आयी | उसने जब रामदीन को साथियों के साथ काम करते देखा तो चौंक गयी | अभी कुछ दिन पहले तो इसने नब्बे रुपये में काम करने से मना किया था आज कैसे राजी हो गया ?
--- देखो ! उस दिन काम नहीं करेगा बोल रहा था | आज कैसे आ गया है | आज कल लोग भूखों मरते हैं ; काम कहाँ मिलता है |
मालकिन की बातों ने रमैया को आहत कर दिया |
--- काम करनेवाले को काम मिलेगा | आलसी आदमी को काम नहीं मिलेगा माँ जी ! आज काम करेगा एक किलो चावल खरीद कर ले जाएगा और दो तीन दिन काम नहीं करेगा ये लोग | जब भूख से पगलायेगा तो काम ढूंढने निकलेगा | ऐसे भी कोई आदमी काम करता है ?........अंतर्मन की फुंफकार दबाते हुए रमैया कह बैठी |
--- अरे ! आजकल मरद औरत दोनों काम करें तभी चलता है |......माँ जी ने रहस्यमय आवाज में कहा |
बात करते करते रमैया का बर्तन मंज चुका था | जल्दी जल्दी उसने कपड़े भी धो दिए |
--- माँ जी ! आज नाश्ता है ?
--- नहीं आज तो मैं और बाबूजी केला , अंडा और दूध लिए नाश्ते में |
रमैया चुपचाप घर पोंछती रही | काम खतम करने के बाद सहसा वह पूछ बैठी ----
--- चाय के लिए बोले थे हम | आप भूल गए |
दिन में में स्वप्न देखती माँ जी चौंक पड़ीं |
--- हाँ ! चाय ! मैं नहीं सूनी | अभी बनाती हूँ |
दो मिनट के बाद एक प्याली चाय रमैया के हाथ में थी |
--- बिस्कुट नहीं है माँ जी ! आज शर्मा माँ जी कि तबीयत खराब थी इसलिए वो सबेरे नाश्ता नहीं दी |
--- क्या हुआ उसको ?
मालकिन ने उठ कर दो बिस्कुट ले आते हुए पूछा |
--- ये बिस्कुट मुझे बहुत अच्छा लगता है |
--- अरे ! वो दोनों मियां बीबी दिन भर झगड़ते रहते हैं |
--- हाँ ! माँ जी | आप तो कितना काम करती हैं | शर्मा माँ जी तो जब बाबूजी ड्यूटी पर चले जाते हैं तब बस सोती रहती हैं | जानते हैं माँ जी ! शर्मा माँ जी का बाप मर गया है |पर बाबू अंको जाने नहीं देता है |
--- आजकल जाने आने में पैसा भी तो बहुत लगता है | ......माँ जी ने उबासी भरते हुए कहा |
--- माँ जी ! आपका देवर आजकल कहाँ है ?
--- नेपाल में है |
--- अरे मेरे चादर में कितना माड दाल दी ! ...बाबूजी कि आवाज गूंजी |
--- क्या बोल रहे हैं बाबुजी ?......रमैया चौंक गयी |
--- बाबूजी बोल रहे हैं कि उनके चादर में तुने ज्यादा माड दाल दिया |
--- ज्यादा हो गया माँ जी !
--- बोल तो रहे हैं |
--- थोड़ा पानी में डुबाकर फिर से धो लेना |....बाबूजी की आवाज गूंजी |
--- क्या बोल रहे हैं बाबूजी ?
--- बाबूजी बोल रहे हैं कि एक बार पानी में डूबकर सुखा देगी तो माड घट जाएगा |
--- अच्छा माँ जी !
अब तक चाय खत्म हो गयी थी | कप धो कर रमैया रखती हुयी बोल उठी ----
---- मैं जा रही हूँ माँ जी ! दरवाजा बन्द कर लेना |

Saturday, April 21, 2012

पालीथीन का बैग ( लघु कथा )

-- सब्जी ! सब्जी!
दूर से सब्जीवाले की आवाज सुनायी दे रही थी |
हमारा गेट उसने खटखटाया |
--- नहीं चाहिए सब्जी |
वो आगे बढ़ ही रहा था कि एक कार कर रुकी |
--- ताजी सब्जी है !
--- हाँ माजी ! आप देखिये |
इतनी चिलचिलाती धुप में कौन उतरता कार से | वह तो ए० सी० कार का शीशा थोड़ा नीचे की थी |
--- ठीक है | आधा आधा किलो हर तरह की सब्जी दे दो |
--- अरे रे ! एक पालीथीन के बैग में सब मत डालना | चुन कार अलग करने में मुश्किल होती है | हर सब्जी अलग अलग पालीथीन में डालना |
--- अरे माँ जी ! एक एक पालीथीन का दाम एक रूपया है |
--- तो क्या हुआ | मैं खाली करके गेट के सामने रख दूंगी | तुम ले जाना |
सब्जीवाले ने सब्जी अलग अलग पालीथीन में वजन कार के डाला और पकड़ा दिया कार में श्रीमती जी को |
--- कितने हुए ! जल्दी बोलो कितनी गर्मी है |
--- १८० रुपये |
--- हाँ !
सौ सौ के दो नोट पकड कर वह चिल्लर लाने मुड़ा |
-- अरे जल्दी ! कितनी गरमी है उफ़ !
बीस रुपये मिलते ही कार चल पड़ी |

विद्यार्थी ( लघु कथा )

        
पत्नी घर में गुपचुप बनाती थी और पति बेचता था दिन में एक पेड़ के नीचे | रात में उसका ठेला घूमता था कॉलोनी की हर सड़क से | उसकी बिक्री देख कर लोग अचंभित होते थे | महिलाओं और बच्चों का तो झुण्ड लग जाता था उसके ठेले पर | क्यों हो ? डाक्टर साहब भी तो खाते थे सपरिवार गुपचुप |
   एक दिन रात में मेन् रोड से घर लौटते समय  ट्रक के धक्के से घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गयी | जिसने सुना वही दुखी हुआ | धीरे धीरे लोग उसे भूल चले | उसके लड़के का स्कूल छूट गया | परिवार कैसे चलता ? अब माँ गुपचुप बनाती है बेटा बेचता है पेड़ के नीचे खड़े हो कर | ग्राहकों की संख्या भी बढ़ गयी है | वह हर सड़क नहीं घूमता है | एक दूसरा गुपचुपवाला घूमता है सड़क पर |

Thursday, April 19, 2012

घेराव ( कहानी )

             
१९७३



एक काले रंग की एम्बेसेडर कार ज्यों ही स्कूल के गेट के सामने गुज़री ,दो विद्यार्थी रास्ते के बीचोबीच लेट गए | गाड़ी ने उन्हें हटाने के लिए हार्न बजाया ,पर वे हटे |
एक मिनट में सारे विद्यार्थियों ने कार को घेर लिया |
--- मि०  वर्मा  मुर्दाबाद  !
--- कार से बाहर निकलो !
--- हेडमास्टर से माफी मांगो !
--- मि० वर्मा मुर्दाबाद !
विद्यार्थियों के नारे गूंजने लगे | मि० वर्मा का चेहरा अपमान से सिंदूरी हो गया | कार के अंदर से वे चिल्लाये
--- ए क्या है ? हूँ .....क्यों हल्ला मचा रहे हो ?....हटो सामने से हटो ..हटो !
--- अबे कार से बाहर निकल !
--- अबे ! कार से बाहर निकल !
--- कार से बाहर निकलो !
--- कार से बाहर निकलो !
माहौल गरम हो उठा |
--- तुमलोग चाहते क्या हो ?...व्हाट इज दिस नानसेंस ?.....मि० वर्मा अवाक हो कर बोले |
कोई बोल उठा --
---ओह हो ! ....तो यही हैं ट्रांसपोर्ट आफीसर !
--- हाँ हाँ !  इन्हीं के अन्डर में गाड़ी वैगरह है |
भीड़ की गरमी बढ़ गयी |
--- साला कार  से बाहर निकलता है कि नहीं |
--- हेडमास्टर से माफी मांग बे !
मि० वर्मा क्रोध में आकर कार से उतर पड़े |
--- तुमलोग क्या शोरगुल मचा रहे हो ?..तुम्हें शर्म आनी चाहिए !..माफी किस बात की ?
--- आप हमलोगों की फूटबाल टीम जाने के लिए गाड़ी नहीं दिए थे | .....गाड़ी क्या आपके ससुर की है ?....जब हमारे हेडमास्टर ने गाड़ी माँगी तो आपने क्यों नहीं दिया ?....आप हमारे हेडमास्टर को क्यों डांटे ? आपको माफी मांग कर ही जाना होगा |...एक विद्यार्थी गरजा |
---ओह हो ! उस दिन की बात ! ....उस दिन तो कोई गाड़ी थी ही नहीं .....और वो तो हमारा और उनका पर्सनल मैटर है ...हम आपस में बात कर लेंगे |......मि० वर्मा ने नम्रता का मक्खन लगाते हुए कहा |
--- नहीं !  नहीं ! ....हमलोग कुछ नहीं जानते | माफी आपको मांगनी ही पड़ेगी |....हमारे हेडमास्टर  का अपमान करने का आप साहस कैसे कर सके |
   विद्यार्थियों की भीड़ मि० वर्मा को  घेराव कर के हेडमास्टर के आफिस तक खींच लायी | टिफिन का समय था | हेमास्टर घर में खाना खा रहे थे | चपरासी दौड़ा- दौड़ा पहुंचा | बेचारे हेडमास्टर का कौर कंठ में अटक गया | किसी तरह पानी पी कर स्कूल पहुंचे | वहाँ का दृश्य देख कर वे भौंचक्के रह गए | इस घटना के घटित होने की गंध उन्हें सुबह ही थोड़ी थोड़ी लगी थी पर सब कुछ इतने जल्दी हो जाएगा ...यह बात उनकी कल्पना शक्ति के बाहर की बात थी |
वे क्रुद्ध हो गए |
--- ये क्या भीड़ लगा रखे हो तुमलोग ?....हटो ...जाओ यहाँ से |
--- नहीं सर ! हमलोग मि० वर्मा से माफी मंगवा कर ही छोड़ेंगे | वे आपका अपमान क्यों किये ?
---वो तो ठीक है | पर वह मेरा और मि० वर्मा का आपसी मामला है | हमलोग आपस में बात कर लेंगे |
--- नहीं नहीं सर ! ...हमलोग उनको ऐसे नहीं छोड़ेंगे | उनको माफी मांगनी ही पड़ेगी |
हेडमास्टर समझ गए कि इन्हें उकसाया गया है | अब ये माननेवाले नहीं | आखिर हार कर वे मि० वर्मा से बोले -----
--- चलिए मेरे कमरे में बैठिये |......ये लोग तो अब टलेंगे नहीं |
मि० वर्मा को हार कर विद्यालय के आफिस में जाना ही पड़ा |
विद्यार्थी चीखे |
--- माफी हमलोगों के सामने मांगनी पड़ेगी |
--- माफी हमलोगों के सामने मांगनी पड़ेगी |
बोस सर ने हाथ ऊपर उठाया | सारे बच्चे शांत हो गए | वे बोले --
--- देखो सब विद्यार्थी  तो एकसाथ आफिस में नहीं जा सकते हैं ; इसलिए तीन विद्यार्थी तुम्हारे प्रतिनिधि बन कर जायेंगे |...मंजूर ?
--- मंजूर ....मंजूर |
खैर तीन विद्यार्थी ग्यारहवीं कक्षा के चुने गए | उन्हें अंदर आफिस में भेजा गया | बाकी विद्यार्थी बाहर खड़े रहे | सब में खूब गर्मागर्मी रही | उन्हें तो मजा रहा था |
प्रतिनिधि बोल उठे ---
--- हूँ अब माफी मांगिये |
--- माफी क्यों मांगू ?
--- अरे वाह ! आप माफी मांगने के लिए तो आये हैं |
मि० वर्मा चुप | चहरे का रंग लाल | प्रतिनिधियों ने विद्यार्थियों की ओर इशारा किया | वे चीख पड़े |
--- मि० वर्मा माफी मांगो !
--- मि० वर्मा माफी मांगो !
--- वर्मा मुर्दाबाद !
हेडमास्टर क्रुद्ध हो कर बाहर निकले | मि० बोस को बच्चों को शांत करने के लिए कहे |
--- बच्चो ! तुमलोग हल्ला मत करो | ....शांत हो जाओ |.....हल्ला क्यों कर रहे हो ?....ये ..नानसेंस ...-----मि० बोस ने डाँटते हुए आँख मारा |
विद्यार्थी और जोर जोर से नारे लगाने लगे | अंदर बैठे मि० वर्मा पसीने पसीने हो गए |
--- ठीक है भाई ! अगर तुमलोग ऐसा सोंचते हो कि मैंने उस दिन तुम्हारे हेडमास्टर का अपमान किया है , तो मैं उनसे माफी मांगता हूँ | असल में मैंने उनका अपमान नहीं किया था | --- मि० वर्मा ने अटकते कंठ से कहा |
--- खैर वो सब तो हम जानते ही हैं , पर यह असल वसल वाला किस्सा यहाँ नहीं चलेगा | आप सीधे से माफी मांगिये |
 
मि० वर्मा ने क्षमा याचना भरी आँखों से हेडमास्टर की ओर देखा |मानो वे कह रही हों कि इतना तो जलील करवाओ |
 
हेडमास्टर तो दो नदियों के पुल बने खामोश बैठे थे |
--- अच्छा भाई ! ... मैं हेडमास्टर से माफी मांगता हूँ |---मि० वर्मा के हताश कंठ से निकला |
--- अब हमलोगों से भी माफी मांगिये | हेडमास्टर का अपमान हमारा भी तो अपमान है |
---- अच्छा अच्छा ! अब जाओ तुमलोग |.....क्रोध में बोल उठे हेडमास्टर |
   प्रतिनिधियों को जहाँ तक सिखाया गया था , वहाँ तक काम हो गया था | अत: वे निकल गए | टिफिन की घंटी बजा दी गयी | सभी विद्यार्थी अपनी अपनी कक्षा में घुस गए | पूरे स्कूल में एक मिनट में नीरवता छा गयी ,मानो कुछ हुआ ही नहीं |
मि० वर्मा अपनी कार में बैठ कर चले गए |
पूरी कालोनी में इस बात की चर्चा जोर शोर से रही |
--- कालोनी से शहर तक का आवागमन  भी तो नहीं है कोई ठीक |
--- आजकल स्टूडेंट अनरेस्ट बहुत हो गया है |
--- भला बताइये ! यह भी कोई तरीका है किसी आफिसर की कर रोक कर उसका घेराव किया जाय और उसे जलील किया जाय |
---  अरे ! हेडमास्टर ही उकसाया होगा !
--- नहीं नहीं ! वो तो बड़ा सीधा सदा है | इस बार की ग्यारहवीं कक्षा का बैच बड़ा दुष्ट है |
--- असल बात बताऊँ मि० बोस ही उकसाया होगा |  मि० वर्मा से वो बहुत चिढता है |
---  हो सकता है ! पर आजकल जनरली विद्यार्थी बड़े उदंड हैं | मेरे तो अभी छोटे छोटे हैं बड़े हो कर पता नहीं क्या निकालेंगे |